हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां देवी-देवताओं के कई मंदिर हैं। इसमें ख़ास बात यह है कि इस प्रदेश में हर गांव में कम से कम एक मंदिर जरूर है। हिमाचल में ऐसा कोई उत्सव नहीं होता है जोकि स्थानीय देवता के बिना पूर्ण होता हो। यहां पर हिमाचल के प्रमुख मंदिर दिए है-
- चम्बा जिला-
(i) शक्ति देवी मंदिर चम्बा के छतराड़ी में स्थित है, जिसका निर्माण मेरूवर्मन ने करवाया था। गुग्गा शिल्पी मेरूवर्मन का प्रमुख शिल्पकार था जिसने यह मंदिर बनाया था। यहां विद्यमान मुख्य मूर्ति देवी शक्ति की है। यह मंदिर शिखर शैली और बन्द छत शैली का बना हुआ है।
(ii) लक्षणा देवी मंदिर भरमौर में स्थित है। यह मंदिर महिषासुरमर्दिनी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर मेरुवर्मन के शिल्पी गुग्गा द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर शिखर शैली और बन्द छत शैैली का बना हुआ है।
(iii) गणेश मंदिर भरमौर में स्थित है। यह मंदिर मेरूवर्मन के समय में बनाया गया था।
(iv) नरसिंह मंदिर भरमौर में स्थित है। इसका निर्माण राजा युगांकर वर्मन की रानी त्रिभुवन रेखा देवी ने करवाया था।
(v) मणिमहेश मंदिर, भरमौर का निर्माण मेरुवर्मन ने करवाया था।
(vi) हरिराय मंदिर की स्थापना लक्ष्मण वर्मन ने की थी। यह मंदिर चम्बा शहर में स्थित है।
(vii) लक्ष्मी नारायण मंदिर चम्बा शहर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण साहिल वर्णन ने किया था। यह 6 मंदिरों का समूह है।
(vii) कामेश्वर महादेव मंदिर साहो और चमेसणी (चम्पावती) मंदिर चम्बा की स्थापना साहिल वर्मन ने की थी। चंद्रगुप्त (शिव), चंद्रशेखर मंदिर भी साहिल वर्मन ने बनवाया था।
(ix) गौरी शंकर मंदिर चम्बा का निर्माण राजा युगांकर वर्मन ने करवाया था।
(x) बंसी गोपाल मंदिर चम्बा का निर्माण राजा बलभद्र वर्मन ने 1595 ई. में करवाया था।
(xi) सीताराम मंदिर चम्बा, खज्जीनाग मंदिर का निर्माण राजा पृथ्वी सिंह की नर्स बाटलू ने करवाया था।
(xii) हिडिम्बा मंदिर चम्बा के मैहला में स्थित है। इसका निर्माण राजा पृथ्वी सिंह की नर्स बाटलू ने करवाया था।
(viii) चम्बा के भरमौर में चौरासी मंदिरों का समूह है।
(xiv) राधा कृष्ण मंदिर चम्बा का निर्माण 1825 ई. में जीत सिंह की रानी राधा ने करवाया था। - काँगड़ा जिला-
i) ब्रजेश्वरी देवी मंदिर काँगड़ा शहर में स्थित है। ब्रजेश्वरी देवी मंदिर को 1009 ई में महमूद गजनवी ने और 1540 ई में खवास खान ने तोड़ा था, जिसे बाद में पुनः बनवा दिया गया था। यह 1905 ई. के भूकम्प में क्षतिग्रस्त हो गया था। यहां पर सती के वक्ष गिरे थे। वर्तमान स्वरूप को देसा सिंह मजीठिया ने सिख शैली में बनवाया था। यह मंदिर गुम्बदाकार शैली का बना हुआ है।
(ii) ज्वालामुखी मंदिर काँगड़ा के ज्वालामुखी में स्थित है। राजा भूमि चंद ने इसे बनवाया था। 1365 ई में फिरोजशाह तुगलक ने इस मंदिर से संस्कृत की 300 पुस्तकों का फ़ारसी में अनुवाद करवाया था। अकबर ने ज्वालामुखी मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया था, जो अपना रंग बदल गया था।। महाराजा रणजीत सिंह ने 1813 ई. में यहाँ पर स्वर्ण जल का गुम्बद बनवाया था। यहाँ पर सती की जीभ गिरी थी। यह मंदिर गुम्बदाकार शैली का बना हुआ है।
(iii) मसरूर रॉक कट मंदिर नागर शैली का बना मंदिर है जिसे कश्मीर के राजा ललित्यादित्य ने 8वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर काँगड़ा जिले के गग्गल-नगरोटा सूरियाँ मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर मुख्यतः शिव को समर्पित है। ठाकुरद्वारा यहाँ का मुख्य धार्मिक स्थल है, जिसमें राम, लक्ष्मण और सीता की पत्थर की मूर्तियाँ हैं। मसरूस 15 मदिरों का समूह है। मसरूर रॉक कट मंदिर को हिमाचल का अजंता’ कहा जाता है। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
iv) बैद्यनाथ मंदिर काँगड़ा जिले के बैजनाथ में स्थित है। इस स्थान को पहले किरग्राम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। शिखर शैली में निर्मित इस मंदिर का निर्माण 1204 ई. में मयूक और आहक नामक व्यापारियों ने करवाया था। राणा संसारचंद ने 19वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(v) भागसूनाथ मंदिर का निर्माण राजा धर्मचन्द ने करवाया था।
(vi) बृजराज बिहारी मंदिर नूरपुर का निर्माण राजा बासू ने करवाया था। यह मंदिर समतल शैली का बना हुआ है।
(vii) लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण राजा संसारचंद ने आलमपुर में करवाया था।
(viii) चामुंडा देवी मंदिर- इसका निर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ था।
(ix) गंगा मंदिर नुरपुर में है। - मण्डी जिला-
(i) भूतनाथ मंदिर मण्डी शहर में स्थित है। इसका निर्माण 1526 ई. में राजा अजबर सेन ने करवाया था। यह मंदिर अर्धनारीश्वर को समर्पित है। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(ii) पंचवक्त्र मंदिर- इसे 15 वीं शताब्दी में बनाया गया। इस मंदिर में भगवान शिव की पंचमुखी प्रतिमा है।
(iii) त्रिलोकीनाथ मंदिर- इसे 1520 ई में राजा अजबर सेन की पत्नी सुल्ताना देवी ने बनाया था। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(iv)टारना देवी मंदिर- इस मंदिर को राजा श्याम सेन ने बनवाया।
(v) माधोराय मंदिर- इस मंदिर का निर्माण 1705 ई में सुरजसेन ने करवाया था। यह मंदिर मण्डी के प्रधान देवता माधोराय (भगवान श्री कृष्ण) को समर्पित है।
(vi) कामाक्षा देवी मंदिर- यह मंदिर करसोग में है। इस मंदिर का निर्माण पैगोडा शैली में 10-11वीं शताब्दी में हुआ था। यहां ममेल के गौरी शंकर का मंदिर भी है।
(vii) श्यामाकाली मंदिर मण्डी में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राजा श्यामसेन ने करवाया था।
(viii) पराशर मंदिर मण्डी में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1346 ई. में राजा बाणसेन ने करवाया था। यह मंदिर पैगोडा शैली का बना हुआ है।
(ix) शिकारी देवी मंदिर- यह मंदिर माता शिकारी देवी को समर्पित है।
(x) मगरू महादेव मंदिर मण्डी शहर में स्थित है।
(xi) बटुक भैरव मंदिर (मण्डी), शम्भू महादेव मंदिर (पड्डल), सिद्ध भद्रा मंदिर (पड्डल), सिद्ध काली मंदिर (सैरी), सिद्ध गणपति मंदिर (सूराकोठी) और सिद्ध जालपा मंदिर का निर्माण राजा सिद्ध सेन ने करवाया था। इसके अलावा चौहार घाटी के मुख्य देवी देवताओं में फूंगनी माता, नौणी माता, देव हुरंग नारायण, देव पशाकोट, देव घडोनी नारायण, शैला देव के मंदिर है। - कुल्लू जिला-
(i) बिजली महादेव मंदिर-यह मंदिर कुल्लू से 14 किलोमीटर दूर ब्यास नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मन्दिर के ऊपर 60 फ़ीट का एक दण्ड स्थापित है जो बिजली को अपनी और आकर्षित करता है। इस बिजली के गिरने से मंदिर के गर्भ में स्थित पाषाण शिवलिंग टूट जाता है। यहाँ हर वर्ष शिवलिंग पर बिजली गिरती है।
(ii) हिडिम्बा देवी मंदिर/ढुंगरी मंदिर- यह मंदिर मनाली से 3 किलोमीटर दूर ढुंगरी के जंगल में स्थित है। यह मंदिर भीम की पत्नी हिडिम्बा देवी को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1553 ई. में राजा बहादुर सिंह ने करवाया था। प्रतिवर्ष मई के महीने में यहाँ ढुंगरी मेला लगता है। यह मंदिर पैगोडा शैली का बना हुआ है।
(iii) मनु मंदिर- यह मंदिर शांसर कुल्लू में स्थित है, जो मनाली के पास स्थित है। यह मंदिर प्राचीन विधि दाता मनु को समर्पित है।
(iv) जामलू मंदिर- यह मंदिर कुल्लू जिले के मलाणा में स्थित है। यह मंदिर जमदग्नि ऋषि को समर्पित है, जिन्हें जामलू देवता के नाम से जाना जाता है।
(v) रघुनाथ मंदिर- रघुनाथ मोदर कुल्लू में स्थित है, जिसे राजा जगत सिंह ने 1651 ई में बनवाया था। यह कुल्लू के मुख्य देवता रघुनाथ जी को समर्पित है। इस मंदिर में रघुनाथ जी की अयोध्या से लाई गयी मूर्ति स्थापित है।
(vi)बजौरा मंदिर/विश्वेश्वर मन्दिर- यह कुल्लू के बजौरा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर 10वीं शताब्दी में बनाया गया है। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(vii) कार्तिकेय (मूर्ति) कनखल- कनखल मंदिर में शिव के पुत्र कार्तिकेय की मूर्ति है। यह मंदिर कुल्लू मण्डी के बीच कनखल में स्थित है।
(viii) गौरी शंकर मंदिर- यह मंदिर जगतसूख में है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(ix) रामचंद्र मंदिर (मणिकर्ण), रामचन्द्र मंदिर (वशिष्ठ) और रघुनाथ मंदिर (सुल्तानपुर) का निर्माण राजा जगत सिंह ने करवाया था।
(x)कपिल मुनि मंदिर का निर्माण राजा मान सिंह ने करवाया था।
(xi) अर्जुन गुफा- यह प्रीणी में है। अर्जुन ने इंद्र देव से शक्तिशाली पशुपति अस्त्र को प्राप्त करने के लिए यहां तप किया था। यह भगवान शिव को समर्पित है।
(xii) वैष्णों देवी मंदिर- यह मंदिर माता वैष्णों देवी को समर्पित है।
(xiii) त्रिपुरा सुंदरी मंदिर- यह नग्गर में है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। यह व्यास नदी के बाएं तट पर स्थित है।
(xiv) मणिकर्ण मंदिर- यह अपने गर्म पानी के चश्मे के लिए प्रसिद्ध है। गुरु नानक देव जी ने यहां आकर ध्यान किया था। - शिमला जिला-
(i)भीमाकाली मंदिर- भीमाकाली मंदिर शिमला जिले के सराहन में स्थित है। सराहन को प्राचीन समय में शोणितपुर के नाम से जाना जाता था।
(ii) हाटकोटी मंदिर-यह मंदिर शिमला के रोहडू तहसील के हाटकोटी में स्थित है। यह मंदिर हाटकोटी माता को समर्पित है। यहाँ महिषासुरमर्दिनी की अष्टधातु की अष्टभुजा वाली विशाल प्रतिमा स्थापित है। वीर प्रकाश ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। यह मंदिर स्तूपाकार शैली का बना हुआ है।
(iii) तारा देवी मंदिर- यह मंदिर शिमला से 5 किलोमीटर दूर तारा देवी में स्थित है। यह अष्टधातु की 18 भुजाओं वाली प्रतिमा है। यह मंदिर माँ तारा देवी को समर्पित है। इसका निर्माण क्योंथल के राजा बलबीर सेन ने करवाया था।
(iv) जाखू मंदिर-यह मंदिर शिमला के जाखू में 8500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। भगवान हनुमान की 108 फुट ऊँची मूर्ति यहां बनाई गई है जो कि विश्व में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित सबसे ऊंची प्रतिमा है।
(v) कामना देवी मंदिर कामना देवी मंदिर शिमला के प्रोस्पेक्ट हिल में स्थित है।
(vi) कालीबाड़ी मंदिर-यह मंदिर शिमला में स्थित है। यह 1845 ई में बनाया गया है। यह मंदिर काली माता (श्यामला देवी) को समर्पित है। शिमला का नाम इसी माता के नाम पर पड़ा है।
(vii) सूर्य मंदिर-यह मंदिर शिमला के ‘नीरथ’ में स्थित है। यह मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। इसे ‘हिमाचल प्रदेश का सूर्य मंदिर’ भी कहा जाता है। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(viii) संकटमोचन मंदिर का निर्माण 1926 ई. में नैनीताल के बाबा नीम करौरी ने करवाया था। यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। यह तारादेवी के पास स्थित है। - सिरमौर जिला-
(i) शिरगुल मंदिर- यह मंदिर चूड़धार पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिर्गुल को समर्पित है। इसका निर्माण 17वीं-18वीं शताब्दी में हुआ।
(ii) त्रिलोकपुर मंदिर/ बालासुन्दरी मंदिर- यह मंदिर सिरमौर जिले के त्रिलोकपुर स्थान पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1573 ई. में दीप प्रकाश ने करवाया था। यह मंदिर महामाया बाला सुंदरी को समर्पित है, जिसे 84 घंटियों वाली देवी भी कहा जाता है।
(iii) गायत्री मंदिर-यह मंदिर रेणुका में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महात्मा पराया नंद ब्रह्मचारी ने करवाया था। गायत्री माता को वेदों की माता भी कहा जाता है।
(iv) जगन्नाथ मंदिर-यह मंदिर सिरमौर जिले में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1681 ई. में राजा बुद्ध प्रकाश ने करवाया था। यहाँ सावन द्वादशी का मेला लगता है।
(v) देई साहिब मंदिर पौंटा का निर्माण 1889 ई. में राजा शमशेर प्रकाश की बहन देई साहिया ने करवाया था।
(vi) कटासन मंदिर कोलर का निर्माण राजा जगत प्रकाश ने करवाया था।
(vii) लक्ष्मी नारायण मंदिर नाहन का निर्माण 1708 ई. में राजा भूप प्रकाश ने करवाया था।
(viii) शिव मंदिर रानी ताल नाहन का निर्माण 1889 ई. में राजा शेर प्रकाश ने अपनी रानी कुटलानी की स्मृति में करवाया था।
(ix) रामकुण्डी मंदिर नाहन का निर्माण 1767 ई. में राजा कीर्ति प्रकाश ने करवाया था। - हमीरपुर जिला-
(i) गौरीशंकर मंदिर-यह मंदिर सुजानपुर टिहरा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1793 ई. में संसार चंद ने करवाया था।
(ii) मुरली मनोहर मंदिर-यह मंदिर सुजानपुर टिहरा में स्थित है और इसका निर्माण राजा संसारचंद ने 1790 ई. में करवाया था।
(iii) गसोता मंदिर-यह मंदिर हमीरपुर में स्थित है।
(iv) नर्बदेश्वर मंदिर-यह मंदिर सुजानपुर टिहरा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राजा संसारचंद ने करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर समतल शैली का बना हुआ है।
(v) बाया बालक नाथ मंदिर-बाबा बालकनाथ का यह मंदिर दियोटसिद्ध हमीरपुर में स्थित है।
(vi) चामुण्डा मंदिर-सुजानपुर टिहरा का निर्माण 1761 ई. में राजा घमण्डचंद ने करवाया था।
(vii) शनि देव मंदिर- यह मंदिर लंबलू में है। यह उत्तरी भारत का एकमात्र शनि मंदिर है। - बिलासपुर जिला-
(i) नैना देवी मंदिर-नैना देवी मंदिर बिलासपुर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण वीरचंद चंदेल ने करवाया था। मान्यताओं के अनुसार यहाँ पर सती के नयन गिरे थे। यह मंदिर गुम्बदाकार शैली का बना हुआ है।
(ii) गोपाल जी मंदिर बिलासपुर का निर्माण सन् 1938 ई. में राजा आनंद चंद ने करवाया था।
(iii) मुरली मनोहर मंदिर बिलासपुर का निर्माण राजा अभयसंद चंद ने करवाया था।
(iv) देवभाटी मंदिर ब्रह्मापुखर का निर्माण राजा दीपचंद ने करवाया था। - ऊना जिला-
(i) चिंतपूर्णी मंदिर- यह मंदिर ऊना में स्थित है। इसका निर्माण 15वीं-16वीं शताब्दी में हुआ था। मान्यताओं के अनुसार यहाँ पर सती के चरण गिरे थे। यह मंदिर गुम्बदाकार शैली का बना हुआ है।
(ii) बाबा बड़भाग सिंह- बाबा बड़भाग सिंह का डेरा जिला ऊना के अम्ब से 10 किलोमीटर दूरी पर मैड़ी में स्थित है। यहां एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है। यहां हर वर्ष फरवरी माह में बाबा बड़भाग सिंह मेला लगता है।
(iii) शिव बाडी मंदिर- यह मंदिर गगरेट में है। ऐसी मान्यता है कि यहां गुरु द्रोणाचार्य के धनुर्विद्या के शिष्य अभ्यास करने आते थे।
(iv) बाबा रुद्रानंद आश्रम- इसे राजा साहिल वर्मन ने अपनी पुत्री चम्पावती की याद में बनवाया था।
(v) बाबा नांगा- ऊना जिले के संतोषगढ़ में बाबा नांगा की समाधि है।
(vi) जोगी पंगा- डेरा बाबा जोगी पंगा ऊना के बौल गाँव में स्थित है। - सोलन जिला-
(i) शूलिनी मंदिर- शूलिनी माता का मंदिर सोलन में स्थित है। शूलिनी माता के नाम पर ही सोलन शहर का नामकरण हुआ है।
(ii) जटोली मंदिर- सोलन के जटोली में हि.प्र. का सबसे ऊँचा मंदिर स्थित है। - लाहौल-स्पीति जिला-
(i) त्रिलोकीनाथ मंदिर- यह मंदिर लाहौल-स्पीति के उदयपुर में स्थित है। इसे 8वीं शताब्दी में में राजा ललितादित्य ने बनवाया था। यहाँ पर अविलोकतेवर की संगमरमर की एक मीटर ऊंची मूर्ति है। यह मंदिर हिन्दुओं और बौद्ध दोनों सम्प्रदायों के लिए पूजनीय है।
(ii) मृकुला देवी मंदिर- यह मंदिर लाहौल-स्पीति के उदयपुर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण अजयवर्मन ने करवाया था। यह मंदिर शिखर शैली का बना हुआ है।
(iii) गुरू घंटाल गोम्पा- लाहौल के तुपचलिंग गाँव में स्थित है। यहाँ अविलोकतेश्वर की 8वीं शताब्दी की मूर्ति है जिसका निर्माण पटुमसंभव ने करवाया था। यह लाहौल का सबसे पुराना गोम्पा है। यह समुद्रतल से 3020 मीटर ऊपर चंद्रा नदी के दाएं तट पर स्थित है।यहाँ प्रतिवर्ष जून के महीने में घण्टाल उत्सव मनाया जाता है।
(vi) ताबो गोम्पा- इसका निर्माण 996 ई. में तिब्बती राजा ये-शशोआद ने करवाया था। यह गोम्पा स्पीति में स्थित है। इसे हिमालय का अजंता के नाम से जाना जाता है। यह समतल शैली का बना हुआ है।
(v) की मठ- यह स्पिति का सबसे बड़ा मठ है। इसे 11वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह समतल शैली का बना हुआ है।
(vi) कारदांग गोम्पा- कारदांग गाँव में स्थित है। इसकी स्थापना 900 ई. के आस-पास हुई थी। लामा नोरबू ने 1912ई में इसका पुनर्निर्माण करवाया था। इस मठ में भोटी भाषा में लिखे कांग्यूर व तांग्यूर नाम के बौद्ध ग्रंथों का विशाल पुस्तकालय है।
(vii) मिंदल देवी मंदिर- यह देवी कोठी में है। इसे राजा उमेद ने 1754 ई में बनवाया था।
(viii) तायुल गोम्पा- इस का निर्माण 17वीं शताब्दी में लामा सरजन रिनचैन ने करवाया था। यहाँ पर पद्मसंभव की 5 मीटर ऊँची प्रतिमा है। यह गोप्पा डुगमा सम्प्रदाय का है।
(ix) कुुंग्री मठ- स्पीति का दूसरा सबसे पुराना मठ पिन घाटी में स्थित है। 1330 ईस्वी के आसपास निर्मित कुंगरी गोम्पा ने हाल ही में अपने नवीनीकरण के लिए बड़े विदेशी दान प्राप्त करने के बाद सार्वजनिक ध्यान हासिल किया।
(x) शाशुर गोम्पा- इस का निर्माण ग्योस्तो द्वारा 17वीं शताब्दी में किया गया था। यह लाहौल में स्थित है।
(xi) गेमूर गोम्पा-केलांग से 18 कि. मी. की दूरी पर स्थित है।
(xii) धनकर मठ- यहां मुख्य मूर्ति वैरोचन (ध्यान बुद्धा) है। - किन्नौर जिला-
(i) जांगी मठ- इसे 10वीं-11वीं शताब्दी में बनाया गया था।
(ii) लिप्पा मठ- इसकी स्थापना लामा देवरामा ने की थी। इसमें तीन मंदिर है।
(iii)किन्नौर जिला में पूह गोम्पा, नामगया मठ, कानम गोम्पा और नाको गोम्पा स्थित है। कानम गोम्पा समतल शैली का बना हुआ है।
इसके अतिरिक्त और भी बहुत से मंदिर है जैसे कि सिरमौर का रेणुका मंदिर, त्रिपुरा नारायण (दयार), आदि ब्रह्मा (खोखन), महेश्वर और चगाओं मंदिर (किन्नौर), बाहन महादेव, धनेश्वरी देवी (निथर सिराज) आदि।