हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत् उत्पादन में हिमाचल प्रदेश की छोटी-बड़ी सभी परियोजनाएं शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश में भारत की 25% विद्युत् ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। कुल 8418 मैगावाट पन विद्युत् 2014 तक जलविद्युत् उत्पादन का लक्ष्य 12000 मैगावाट रखा गया है। हिमाचल प्रदेश की सम्भावित जल विद्युत् ऊर्जा यदि निर्धारित क्षमता तक दोहित कर ली जाए तो यह भारत का प्रमुख शक्ति राज्य बन जाएगा। हिमाचल की लगभग सभी नदियों में ऊर्जा पैदा करने की क्षमता है जैसे; यमुना नदी की जल विद्युत् क्षमता 839.89 मैगावाट, सतलुज की 13332 मैगावाट, ब्यास नदी की 5995.45 मैगावाट, रावी नदी की क्षमता 3237.12 मैगावाट तथा चिनाव नदी की 4031.91 मैगावाट है। हिमाचल प्रदेश में अगस्त, 1913 के अनुमान के आधार पर सभी नदियों और उनकी सहायक नदियों में 27,436 मैगावाट बिजली उत्पादित की जा सकती है। हिमाचल प्रदेश में जलविद्युत उत्पादन की सबसे अधिक सम्भावनाएं सतलुज नदी बेसिन में है जो हिमाचल प्रदेश की कुल उत्पादन क्षमता का लगभग आधा भाग 48.6% है जबकि ब्यास नदी बेसिन में 21.8%, चिनाव में 14.7%, रावी में 11.8%, तथा यमुना में 3.1% है। हिमाचल प्रदेश विद्युत् निगम ने 2022 तक 2400 मैगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा है। 5 मैगावाट जल विद्युत् उत्पादन करने वाली छोटी-छोटी परियोजनाओं में हिमाचलियों को प्राथमिकता दी जायेगी। 2012 तक 8368 मैगावाट का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। सतलुज जल विद्युत् निगम की स्थापन 1988 में की गई।
हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत् विकास की अवस्थाएं-
हिमाचल प्रदेश में यदि इसकी सम्पूर्ण जल विद्युत् सम्भावनाओं को विकसित कर लिया जाए तो शक्ति राज्य (Hydro Electric State) के रूप में उभर कर सामने आएगा, क्योंकि इस राज्य में भारत की 25% जल विद्युत् उत्पादन की सम्भावनाएं हैं। हिमाचल में कुल 23 हजार मैगावॉट पनविद्युत् उत्पादन क्षमता का अनुमान लगाया जा रहा है। अभी तक पनविद्युत् दोहन कर 6725 मैगावॉट विद्युत् उत्पादन किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकार, केन्द्र सरकार, संयुक्त क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के सहयोग से चलाई जा रही परियोजनाओं से राज्य को 625 करोड़ का राजस्व प्राप्त हो रहा है। इन परियोजनाओं से प्राप्त कुल विद्युत् उत्पादन हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत् बोर्ड द्वारा किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में आरम्भ की गई “अटल बिजली बचत योजना” के अन्तर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को चार-चार सी. एफ. एल. बल्ब उपलब्ध करवाए गए हैं। हिमाचल प्रदेश में पनविद्युत् दोहन का सूत्रपात सन् 1908 ई. को चम्बा रियासत में हुआ। चम्बा के राजा भूरि सिंह ने पहाड़ी रियासतों में सर्वप्रथम पनविद्युत् परियोजना का निर्माण करवाया। इसके पश्चात् अन्य रिसायतों में भी जल के अक्षय भण्डार से बिजली उत्पन्न करने की परम्परा आरम्भ हुई। सन् 1912 ई. में शिमला के समीप चाम्बा में विद्युत् उत्पादन आरम्भ हुआ। पंजाब की कांगड़ा रियासत के मण्डी में बस्सी -शानन पनविद्युत् परियोजना 10 मार्च, 1933 ई. को भारत के तत्कालीन वायसरॉय तथा गवर्नर जनरल विलिंग्डन ने जनता को समर्पित की थी। हिमाचल प्रदेश में स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व बिजली को आपूर्ति कुछ रियासतों के मुख्यालय में ही उपलब्ध थी। सन् 1948 ई. में हिमाचल प्रदेश के गठन पर राज्य में कुल विद्युत् आपूर्ति 550 किलोवाट थी। पनविद्युत् क्षेत्र को सरकारी नियन्त्रण में रखने के आशय से सन् 1948 ई. को विद्युत् आपूर्ति अधिनियम-1948 हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पारित हुआ। सन् 1971 ई. को हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड का गठन हुआ। राज्य में विद्युत् उत्पादन, संचार तथा वितरण के समस्त कार्य विद्युत् बोर्ड को सौंपे गए। पनविद्युत् के क्षेत्र में बढ़ती विकासात्मक गति ने हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी सुदृढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पनविद्युत् की अपार सम्भावनाओं को सही ढंग से कार्यान्वित करने के ने 6 जनवरी, 2011 को हिमाचल प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग का गठन किया है। हिमाचल प्रदेश में पनविद्युत् उत्पादन तीन क्षेत्रों (1) राज्य (State Sector) (2) केन्द्र और संयुक्त क्षेत्र (Central Joint Sectory (3) निजी क्षेत्र (Private Sector) में हो रहा है।