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हिमाचल प्रदेश की प्रमुख नदियां

हिमाचल प्रदेश में सतलुज-शतुदु, व्यास-अर्जीकिया, रावी-परूषणी, चिनाब-असकिनी तथा यमुना पाँच प्रमुख नदियां बहती हैं। हिमाचल के पूर्व से सतलुज, पश्चिम से रावी, उत्तर से चन्द्रभागा (चिनाब) और ब्यास तथा दक्षिण में यमुना नदी बहती है। सतलुज नदी मानसरोवर (तिब्बत) के रॉकसताल से 320 किलोमीटर की यात्रा तय करने के बाद शिपकी दर्रा पर हिमाचल में प्रवेश करती है। चिनाब गनौर (संसारी नाला) के पास चम्बा को छोड़कर जम्मू में प्रवेश करने के बाद पाकिस्तान में बहती है। पाकिस्तान में चिनाब पहले जेहलम के साथ मिलती है और फिर दोनों नदियाँ सिन्धु नदी में मिल जाती हैं। सतलुज और व्यास पंजाब में हरि-का-पतन नामक स्थान में मिलती हैं। यहाँ से आगे व्यास अपना नाम खोकर सतलुज के साथ बहती हैं। चिनाब, रावी, सतलुज, सिन्धु और झेलम पंचनद बनाकर अरब सागर में गिरती हैं। यमुना नदी प्रयाग में गंगा और सरस्वती के साथ मिलकर पूर्ववर्ती दिशा में बहती हुई गंगा सागर अर्थात् बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस नदी पर भारत का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बांध भाखड़ा बांध भी है
हिमाचल प्रदेश की पाँच नदियों का वर्णन निम्नलिखित है:
(1) सतलुज (Satluj)- सतलुज का वैदिक नाम शतुद्रि और संस्कृत नाम शुतद्रु है। शतुदु नदी का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। सतलुज के अन्य नाम मुकसंग, सम्पू, जुगंटी, सुमुद्रंग, सुतूद्रा आदि हैं। हिमालय से निकलने के कारण इसे हेमवती अथवा हुफसिस कहा गया है। सतलुज को ग्रीक में हुपनिस अथवा हुफसिस कहा गया है। सतलुज नदी कैलाश पर्वत के दक्षिणी में मानसरोवर अर्थात् मानतलाई झील के पास राक्सताल झील/ रावण हृद (तिब्बत) से निकलती है। यहां से यह नदी 400 किमी के लगभग दूरी तय करने के बाद हिमालय पर्वत की उच्च श्रृंखलाओं और जास्कर में बहती हुई शिपकी दर्रे पर हिमाचल में प्रवेश करती है। यह नदी किन्नौर जिले को दो भागों में बांटने के बाद लगभग 130 किलोमीटर बहने के बाद चौरा नामक स्थान पर शिमला जिले में प्रवेश करती है। सतलुज नदी हुईधार (मण्डी) तथा कसोल (बिलासपुर) जिले में प्रवेश करती है। यह नदी बिलासपुर में हिमाचल को छोड़ कर पंजाब में बहती है। मानसरोवर से सतलुज का मार्ग प्रशस्त करने वाला मानव बाणासुर था।
सतलुज की सहायक नदियाँ (Tributaries of Satluj)- किन्नौर जिले में सतलुज के दाईं ओर स्पीति, रोपा, पेजुर (तेती), काशंग मुलगून, वांगर, शोरंग और रूपी तथा सतलुज के बाईं ओर तिरंग, ज्ञाथिंग, बास्पा, दुलिंग, सोलडंग आदि खड़ें सतलुज की सहायक नदियां हैं। किन्नौर में सतलुज की सबसे बड़ी सहायक नदी स्पीति है, जो 112 किमी लम्बी है जो खाब नामक स्थान पर सतलुज में मिलती है और उसके बाद 72 किमी लम्बी बास्पा कड़छम में सतलुज के साथ मिलती है। मुलगून नदी किन्नौर और लाहौल-स्पीति की सीमा विभाजक रेखा भी है। शिमला जिला में सतलुज की पोषक खड़ें पशाद, मुगलद, नोगली, बछदा, भैंरा, सदरी, किंगल, शोवान, पन्दोआ, मालगी, सैंज आदि हैं। बिलासपुर जिले में अली, गम्भरोला, मोनी, सीर आदि खड्डे सतलुज में मिलती हैं। कुल्लू जिले के ऑउटर सिराज में श्री खण्ड के दक्षिण-पश्चिमी भाग से निकल कर कूपन नदी सतलुज में मिलती है। मण्डी जिला के करसोग तहसील के ऊपरी पहाड़ो से बहने वाली अमला और विमला नदियां भी इसी में मिलती है। हिमाचल प्रदेश में बहने वाली पाँच नदियों में सतलुज सबसे लम्बी नदी है। हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी घाटी सर्वाधिक पनविद्युत् उत्पादन क्षमता 10445 मैगावाट की है। इस नदी पर राज्य की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील गोविन्दसागर (बिलासपुर) भाखड़ा बांध के निर्माण के कारण बनी है। हिमाचल में 320 किमी की दूरी तय करती है। इसका जल ग्रहण 20000 वर्ग किमी है। सतलुज नदी तट पर तत्तापानी, रामपुर तथा बिलासपुर शहर बसे हैं।

(2) व्यास अथवा व्यास (Beas)-
ऋग्वेद में ब्यास नदी को आर्जीकिया और संस्कृत में विपाशा कहा गया है। ग्रीक इतिहासकार इसे हिफेसिस (Hyphasis) पुकारते हैं। व्यास कुण्ड पर ऋषि व्यास की आश्रम स्थली होने पर इसका नाम ब्यास पड़ा। ब्यास नदी व्यास कुण्ड और ब्यास रिखी से निकलती है। यह कुण्ड पीरपंजाल पर्वत शृंखला के रोहतांग दर्रे पर समुद्रतल से 3,960 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस नदी में सोलंग (सहायक नदी) का वेगवान जल मिलने के बाद ब्यास कुल्लू घाटी के दक्षिण में बहती हुई लारजी पहुंचती है। ब्यास नदी बजौरा के समीप फेरनू (चवारसीगढ़) नामक स्थान पर मण्डी जिले में प्रवेश करती है। यह नदी मण्डी जिले को दो असमान भागों में बांटती है। मण्डी शहर ब्यास नदी के बाएं किनारे पर बसा है। मण्डी जिले में बहने के बाद ब्यास समुद्रतल से लगभग 1800 फुट की ऊँचाई पर संधोल नामक स्थान पर कांगड़ा में प्रवेश करती है। कांगड़ा जिले में बहने के बाद ब्यास नदी नादौन और हमीरपुर जिला की सीमाओं को स्पर्श करती हुई मीरथल नामक स्थान पर पंजाब में चली जाती है। बाद में यह हरि का पतन के पास सतलुज नदी से मिल जाती है।
ब्यास की सहायक नदियां (Tributaries of Beas)- कुल्लू के पूर्व की ओर से पार्वती, पिन, मलाणा, हुस्ला, सैंज और तीर्थन आदि व्यास की सहायक नदियां हैं। व्यास की सबसे बड़ी सहायक नदी पार्वती है। यह भूईन में ब्यास के साथ मिल जाती है। स्पीति और कुल्लू की सीमा रेखा निर्धारित करने वाली श्रृंखला शुपाकुणी के पश्चिमी भाग से सैंज खड्ड निकल कर लारजी में व्यास के साथ मिलती है। इस स्थान से कुछ दूरी पर पहले सैंज और तीर्थन इकट्ठी मिलती हैं और बाद में ब्यास में समा जाती हैं। तीर्थन भी शुपाकुणी पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी भाग से निकलती है। पश्चिम में व्यास की प्रमुख सहायक नदियां सोलंग, मनालसू, सुजन, फोजल और सरदरी खड्ड हैं। मण्डी के उत्तरी भाग की ओर ऊहल, लूणी, रान और बीनू तथा दक्षिण की ओर हंसा, बाखली, जीऊणी, सुकेती, पनोडी, सोन और बढेड़ खड्ड हैंऊहल बड़ा भंगाल के थामसर दर्रे से निकलती है। यह थाच और लम्बाडग धाराओं के मिलने से बनती हैइसे रीना नदी भी कहते हैं। लूणी छोटा भंगाल पर्वत श्रेणी से निकलती हैं। जीऊणी खड़ नाचन क्षेत्र की कामरू नाग पहाड़ियों से निकलती है। बाखली खड्ड पंडोह के पास ब्यास नदी मेंं मिलती है। मण्डी और हमीरपुर के मध्य सीमा निर्धारित करने वाली बकर खडु है, जो अवाह देवी की पहाड़ियों से निकल कर संधोल में ब्यास नदी के साथ मिल जाती है। इस क्षेत्र में बकर को खड्डों की रानी कहा जाता है। कांगड़ा जिले में व्यास की सहायक नदियों में बिनवा, न्योगल, वाण गंगा, गज, डेहर और चक्की नदियां प्रमुख हैं। इनमें बिनवा बैजनाथ के शिखर से निकल कर प्रवाहित होती है। बाणगंगा कांगड़ा के मूल से बहती है। चक्की कांगड़ा और पंजाब के गुरदासपुर जिले के बीच सीमा बनाती है। हमीरपुर जिले की दो खड़ें कणाह और मान नादौन के समीप ब्यास नदी में मिलती हैं। ब्यास नदी घाटी पनविद्युत् उत्पादन क्षमता 5339 मैगावाट रखी गई है। ब्यास नदी का पानी सुरंगों और नहरों के द्वारा मण्डी से 14 किलोमीटर दूर पण्डोह में बांध बनाकर सलापड़ में विद्युत् उत्पादन के लक्ष्य से सतलुज में मिला दिया गया है। देहरा गोपीपुर से 35 कि.मी. पश्चिम उत्तरी की ओर व्यास नदी पर पौंग बांध बनाया गया है। यह हिमाचल में 256 किमी की दूरी तय करती है और इसका जल ग्रहण क्षेत्र 12000 वर्ग किमी है। व्यास नदी के किनारे मनाली, कुल्लू, बजौरा, नगवाई, मण्डी, सुजानपुर, नादौन आदि शहर बसे हैं।

(3) चिनाब (Chenab)-
यह नदी चन्द्रा और भागा दो नदियों के मिलाप से बनी है। ये दोनों नदियां लाहौल उपमण्डल में बारालाचा दर्रे से निकलती है। चन्द्रा नदी बारालाचा दर की पूर्वी-दक्षिणी ढलान पर समुद्र तल से 4866 मी. की ऊँचाई पर चन्द्रताल झील से निकलती है। भागा नदी बारालाचा दर्रे के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में समुद्रतल से 4800 मी. की ऊंचाई पर सूरजताल झील से निकलती है। ये दोनों नदियां बारालाचा दर्रे से विपरीत दिशा में बहती हैं। तांडी नामक स्थान पर दोनों नदियां मिलकर चन्द्रभागा नदी को जन्म देती है। लाहौल के तांडी से प्रवाहित होने के बाद चन्द्रभागा थिरोट के जोलंग ( भुजंद ) नामक स्थान पर चम्बा जिले में प्रवेश करने है । यहाँ से चन्द्रभागा का नाम बदल कर चिनाब हो जाता है। चिनाब चम्बा के गनौर के समीप संसारी नाला नामक स्थान पर जम्मू में प्रवेश करती है। यह नदी चम्बा और जम्मू की सीमा विभाजक रेखा भी है। चन्द्रभागा का वैदिक नाम असिनी है। ग्रीक इतिहासकार चन्द्रभागा के ऋग्वैदिक नाम को अकेसीनीज (Akesines) पुकारते हैं। लाहौल की स्थानीय बोली में चन्द्रा को रंगोली तथा भागा को गारा (पुत्र) कहा जाता है। चिनाब हिमाचल प्रदेश की सभी नदियों में सर्वाधिक सघन जल की नदी है।
चिनाब की सहायक नदियां (Tributaries of Chinab)-
चिनाब नदी की सहायक नदियां सोनापानी, सेशू आदि हिमखण्डों से निकलती हैं। भागा की सहायक नदियां योच नाला, जस्कर चु, मीलंग, व्यूलंग आदि हैं। चन्द्रभागा नदी की सहायक नदियों में मियार नाला भी प्रमुख हैं, जो उदपुर में चन्द्रभागा के साथ मिल जाता है। छेबिया और कालिछे नाले त्रिलोकीनाथ में चन्द्रभागा के साथ शामिल होते हैं। चम्बा के दाईं ओर पारमार, हुडन और सुरल खड़े हैं, जबकि बाई ओर हडसर, दराटी और महरू हैं। ये खड्डे चन्द्रभागा में चैनी (मिन्हाड) नामक स्थान पर मिलती हैं। चन्द्रभागा नदी घाटी को पनविद्युत् उत्पादन क्षमता 3453 मैगावाट है। पनविद्युत् उत्पादन के क्षेत्र में चन्द्रभागा नदी का हिमाचल में तीसरा स्थान है। यह हिमाचल में 122 किमी की दूरी तय करती है और इसका जल ग्रहण क्षेत्र 7500 वर्ग किमी है।

(4) रावी (Ravi)-
ऋग्वैदिक ऋचाओं में रावी को परूषणी कहा गया है। इसका संस्कृत शास्त्रीय नाम ईरावती है। यूनानी इतिहासकार एलैग्जेंडर ने रावी को हाईड्रागेट्स (Hydraotes) के नाम से पुकारा है। रावी शब्द रौदी, रौती, ईरौती, रावा आदि शब्दों का वर्णित रूप है। यह नदी धौलाधार पर्वत श्रृंखला के बड़ा भंगाल में भादल और तांतगुरी हिमखण्डों से निकलती है। रावी धौलाधार को पीरपंजाल से अलग करती हुई बजोल नामक स्थान में चम्बा जिले में प्रवेश करती है। चम्बा में प्रमुख नदी के रूप में प्रवाहित होने के बाद खेरी नामक स्थान तक हिमाचल में लगभग 158 किलोमीटर का सफर पूरा करने पर पंजाब राज्य में प्रवेश करती है। इसका जल ग्रहण क्षेत्र 5451 वर्ग किमी है।
रावी नदी की सहायक नदियां (Tributaries of Ravi)– चम्बा के बाईं ओर मध्य हिमालय की ढलान पर कुगती दर्रे से निकलने वाली सहायक नदी बुड्डुल है, जो हड़सर में रावी के साथ मिल जाती है। मणिमहेश से निकलने वाली जलधारा रावी में उलान्स के समीप मिलती है। मध्य हिमालय पर्वत श्रृंखला के कालिछो दर्रे से दूसरी बड़ी सहायक नदी टुण्डा निकलती है। यह नदी टुण्डा घाटी में बहने के बाद उलान्स में रावी के साथ मिलती है। बुडुल और टुण्डा दोनों सहायक नदियां लगभग साठ-साठ किलोमीटर का मार्ग तय करने के बाद रावी में मिलती हैं। रावी की सहायक खडुबेलजेड़ी चौरी नामक स्थान पर तथा साहू पर्वत श्रेणी से निकलने वाली साल खड्डु चम्बा के समीप रावी में मिलती है। रावी के बाएँ किनारे पर बहने वाली खड्डों और नालों में चिड़चिण्डी नाला प्रमुख है। यह छतराड़ी के समीप रावी में मिलकर चम्बा और भरमौर तहसीलों के बीच सीमा रेखा स्थापित करता है। रावी नदी की सबसे सहायक नदी सिऊल है। यह भलेई के समीप तलेरू नामक स्थान पर रावी नदी में मिलती है। सिऊल नदी चम्बा और जम्मू की सीमा विभाजक रेखा है। पांगी पर्वत श्रृंखला से प्रवाहित होने वाली खड्डों और नालों में अलवास, भैरा, तीसा तथा चांजू नाला भी सिकल में मिलता है। दागनीधार का बरनोटा नाला भी सिऊल में मिलता है। चम्बा जिला में बाईं ओर रावी की अन्तिम सहायक नदी सिओवा है। यह चम्बा और जम्मू के मध्य प्राकृतिक सीमा रेखा का काम करती है। हिमाचल में विद्युत् उत्पादन क्षमता की दृष्टि से रावी घाटी चौथे स्थान पर है। रावी नदी घाटी की विद्युत् उत्पादन क्षमता 2952 मैगावाट आंकी गई है। रावी नदी के दाएँ किनारे तथा साहू खड्ड के बाईं ओर एक टापू पर चम्बा शहर बसा है।

(5) यमुना (Yamuna)-
इस नदी का वैदिक नाम यमुना तथा संस्कृत शास्त्रीय नाम कालिंदी है। यमुना सूर्य पुत्री होने पर यम की बहन है। यमुना को स्थानीय बोली में जमना भी कहा जाता है। यह नदी उत्तराखण्ड के कलिन्द पर्वत से यमुनोत्री नामक स्थान से निकलती है। यह नदी गढ़वाल जनपद से प्रवाहित होकर जौनसार-बाबर को पोषित करती हुई सिरमौर जिला के खोदर माजरी में हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। यह नदी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के मध्य पूर्वी-दक्षिणी छोर पर सीमा विभाजक रेखा है। यमुना हिमाचल में 22 किलोमीटर बहने के बाद काँच ताजेवाला, नामक स्थान पर उत्तराखण्ड में चली जाती है। यह हिमाचल की सबसे छोटी नदी है। यह हिमाचल की पूर्वोत्तम नदी है।
यमुना की सहायक नदियां (Tributaries of Yamuna)- यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी तौंस यमुनोत्री पर्वत श्रृंखला की विपरीत घाटी से निकलती है। ताँस की दो प्रमुख सहायक खड़ें रूपीण और शुपीण जौनसार-बाबर के नौटवाड़ में मिलती हैं। तौंस नदी जुब्बल और चौपाल की सीमाओं पर बहती हुई मीनस नामक स्थान पर सिरमौर में प्रवेश करती हैं। तौंस की प्रमुख सहायक नदी पब्बर रोहडू जांगलिक के बुरान-चांसल दरें से निकलकर तौस के साथ त्युणी में मिलती है। तीस की एक अन्य सहायक खड्ड नेड़ा (टिम्बी), खड्ड शिलाई (चमयारा) के समीप तौंस में मिलती है। यमुना की सहायक नदी तौंस सिरमौर जिला के पूर्ववर्ती नालों और खड्डों को साथ लेकर खोदर माजरी में तेज वेग के साथ यमुना में मिल जाती है। यमुना की दूसरी सहायक नदी गिरिगंगा जुब्बल तहसील के चाम्बी-कुपड़धार से निकलती है। गिरि जुब्बल में बहने के बाद कोटखाई, ठियोग, सोलन और शिमला जिला को छूती हुई मरयोग के समीप मंदोप्सला नामक स्थान में सिरमौर जिला में प्रवेश करती है। यह सहायक नदी दो जिलों शिमला और सिरमौर की सीमा विभाजक रेखा भी है। सिरमौर जिला में लगभग 88 किलोमीटर बहने के बाद गिरि रामपुरी घाट में यमुना के साथ मिल जाती है। गिरिगंगा की सहायक खड्डों और नालों में बसारी, चैती, धैरली, चन्दगांवटी, कोकू नाला, कियारी खड्डु, देवरी खडु, दसण नाला, पराना नाला, बसलन खड्डु, माईपुल नाला, चूड़ाधार से निकलने वाली नौइटह-पालर खड्डु, बझेतू खड्डु आदि शामिल हैं। यमुना की एक अन्य सहायक नदी बात्ता है। यह सहायक नदी नाहन तहसील की धारठीधार के सियोरी स्त्रोत से निकलती है। यह बागना गांव की तलहटी से बहती हुई क्यारदादून को दो भागों में बांटती है। यह बरसाती खडु बात्ता मण्डी के पास यमुना में शामिल हो जाती है। यमुना नदी घाटी की जल विद्युत् उत्पादन क्षमता 1811 मैगावाट रखी गई है। यह लक्ष्य यमुना की सहायक नदियों गिरि, बात्ता और तौंस के दोहन से पूरा किया जा सकेगा। यमुना नदी के किनारे पांवटा शहर बसा है। गिरि गंगा के तटीय भाग पर श्री रेणुका जी और विष्णु का छठा अवतार भगवान परशुराम धाम भी पड़ता है।

स्वां नदी ऊना को दो भागों में बांटती है। इसे ऊना जिले की दुख की नदी (The river of sorrow) कहा जाता है।

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