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हिमाचल प्रदेश की जल विद्युत परियोजनाएं


हिमाचल प्रदेश की पनविद्युत् उत्पादन क्षमता 2013 के सर्वेक्षण के अनुसार 27433 मैगावाट आंकी गई है। भारत की कुुल विद्युत क्षमता का 25% भाग हिमाचल प्रदेश में विद्यमान है। यह पनविद्युत् उत्पादन हिमाचल प्रदेश से प्रवाहित हो रही पांच मुख्य नदियों पर नदी घाटी पर आधारित है। इसमें सतलुज घाटी- 10361 मैगावाट, व्यास घाटी- 5357 मैगावाट, चिनाब घाटी- 2973 मैगावाट, रावी घाटी- 2958 मैगावाट तथा यमुना घाटी- 817 मैगावाट पनविद्युत् उत्पाद रखा गया है।

  • भूरी सिंह योजना- इसका निर्माण राजा भूरी सिंह ने 1908 में शुरू किया था। इसकी क्षमता 0.45 मेगावाट है।
  • चाबा परियोजना- यह परियोजना शिमला में 1912 ई में बनायी गयी। इसकी क्षमता 1.75 मेगावाट है।
  • शानन परियोजना- इसकी क्षमता 110 मेगावाट की है। पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा निर्मित पंजाब के अधीन है। मण्डी जिले के जोगिन्द्रनगर में स्थित यह हिमाचल प्रदेश में बनी जलविद्युत परियोजना है जो 1932 में व्यास की सहायक नदी रीना नदी पर बनी थी जिसे उहल खड्ड भी कहते हैं।
  • भरमौर परियोजना- यह जिला चम्बा में रावी पर निर्मित है। इसकी क्षमता 45 मेगावाट है। यह 1933 में तैयार हुई।
  • नाथपा-झाकड़ी परियोजना (Nathpa-Jhakhari Project) – इनमें सतलुजविद्युत् परियोजना है, जिससे 1500 मैगावाट बिजली पैदा हो रही है। इस परियोजना पर 6,000 करोड़ के लगभग व्यय होने का अनुमान है। यह राज्य और केन्द्रीय सरकार द्वारा संयुक्त रूप से विश्व बैंक की सहायता से चालू की गई है। इसके कार्यान्वयन के लिए एक स्वतन्त्र निगम नाथपा-झाकड़ी निगम (NJPC) बनाया गया था, जिसे 1988 सतलुज जल विद्युत् निगम’ (SJVN Ltd.) के नाम से पुन: स्थापित किया गया है। इस परियोजना से 88% ऊर्जा उत्तरी ग्रिड को दी जा रही है। 88% (शेष ऊर्जा) का 25% भाग हिमाचल को बस-बार-दर पर दिया जा रहा है। इसमें 6 यूनिट प्रति 250 मैगावाट के हैं। उत्पादन जनवरी, 2004 में आरम्भ हो गया था।
  • कड़छम वांगतु परियोजना (Karehham Wangtu Projeet)-इस परियोजना में कड़छम के पास सतलुज के पानी को मोड़ कर 155 किलोमीटर लम्बी सुरंग से ले जाकर 280 मीटर शीर्ष से वागतु (किन्नौर) के पास भूमिगत पावर हाऊस में गिराकर 1000 मैगावाट बिजली पैदा की जायेगी। इस योजना पर 6314 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
  • घानवी परियोजना (Ghanvi Project)- यह परियोजना ज्योरी के पास सतलुज नदी से मिलने वाली घानवी खड्ड के पानी से कार्यान्वित की जा रही है, जिससे 22.5 मैगावाट बिजली पैदा होगी और इस पर 95 करोड़ रुपये व्यय होने का अनुमान है। इसे कार्यान्वित के लिए निजी क्षेत्र में दिया गया है।
  • बास्पा हाइडल परियोजना (Baspa Hydel Project)— यह परियोजना सतलुज की सहायक नदी बास्पा के पानी से दो चरणों में कार्यान्वित की जाएगी। इससे 300 मैगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी और इस पर 600 करोड़ रुपये व्यय होने का अनुमान है। इस परियोजना के प्रथम चरण में किन्नौर कड़छम नामक गांव में ऊपर करने की ओर 165 मीटर ऊंचा बांध बनाया जायेगा। जिसमें 25 हजार रुपये हैक्टेयर मीट्रिक जल इकट्ठा करने को क्षमता होगी। यह पानी एक सुरंग द्वारा बांध तक पहुंचाया जायेगा, जो 15 कि.मी. लम्बी होगी। यह सुरंग सांगला गांव के समीप बास्पा नदी के दायें किनारे भूमि के नीचे से पावर हाऊस तक पहुंचाएगी, जिसकी जल विद्युत् उत्पादन क्षमता 210 मैगावाट होगी।
  • बस्पा हाईडल प्रोजैक्ट स्टेज II – का काम भी सम्पूर्ण हो गया है। इस प्रोजैक्ट को चलाने के लिए कड़छम्सां गला गांवों के बीच वाले स्थान पर बास्पा नदी के अतिरिक्त पानी को प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें सांगला (स्टेज-1) पावर हाऊस के पानी को भी मिला दिया जाएगा। इस पानी को सतलुज नदी के बायें किनारे पर बनी सुरंग में से गुजारा गया है और शांगटौंग पावर हाउस तक पहुंचाया जायेगा। इससे 300 मैगावाट बिजली उत्पादन किया जाएगा। परियोजना का कार्य निजी क्षेत्र में मैसर्ज जय प्रकाश इंडस्ट्रीज को दिया गया है तथा यह निजी क्षेत्र की सबसे पहली जल विद्युत् परियोजना है।
  • संजय विद्युत् परियोजना या भाभा परियोजना (Bhaba Projeet)- यह परियोजना किन्नौर जिले में हुरी गांव में भावा खड्ड पर कार्यान्वित की गयी है। इसकी तीन इकाइयां हैं। प्रत्येक से 40 मैगावाट कुल 120 मैगावाट बिजली पैदा की जा सकती है। इस पर 125.22 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। इस परियोजना में भावा खड्ड के पानी को 57 किलोमीटर लम्बी, 2.5 मीटर व्यास नदी वाली सुरंग से ले जाकर 4.5 मीटर व्यास वाली सार्जशाफ्ट में डालकर 1410 मीटर लम्बी लोहे की शाफ्ट से बनी 1.5 मीटर व्यास की तीन शाखाओं में ले जाकर भूमिगत पावर हाउस में डाला गया है। 1989 में यह योजना पूर्ण हो गई थी। यह एशिया की पहली भूमिगत योजना है।
  • कोल डैम परियोजना (Kol Dam Project)- यह परियोजना सतलुज नदी पर डैहर से 6 किलोमीटर ऊपर को कोल नामक स्थान पर 163 मीटर ऊँचा राकफिल बांध बनाकर कार्यान्वित की जा रही है। 11.7 मीटर व्यास वाली एक किलोमीटर लम्बी सुरंग द्वारा पानी सतलुज नदी के बाएं किनारे पावर हाऊस में गिराया जाएगा। इस परियोजना से 800 मैगावाट बिजली उत्पन्न की जाएगी और इस पर 5360 करोड़ रुपये के लगभग व्यय होगा। इसका कार्यान्वयन नैशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (NTPC) द्वारा किया जा रहा है। 12% उत्पादन हिमाचल को निःशुल्क मिल रहा है।
  • रौंग-टौंग हाइडल परियोजना (Rong Tong Hydel Project)—यह परियोजना लाहौल-स्पिति में स्पीति के सहायक नाले रौंग-टौंग के पानी से बिजली तैयार करने हेतु कार्यान्वित की गयी है। यह स्पिति के मुख्यालय से 6 कि.मी. दूर काजा में स्थित है। इसमें 2 मैगावाट बिजली पैदा हो रही है। यह दिसम्बर 1986 में चालू हो गयी है। इस योजना की विशेषता यह है कि यह समुद्रतल से 3660 मीटर की ऊंचाई पर तैयार की गयी है। इस परियोजना को 1986 में स्वीकृति दी गई थी। इस परियोजना के अन्तर्गत जल विद्युत् उत्पादन के लिए 2825 मी. लम्बी चैनल बनाई गई है, जिसमें पानी 259 मी. लम्बी सुरंग द्वारा खुले जलाशय में ले जाया गया है।
  • शोंगटोंग करछम परियोजना- यह जिला किन्नौर में सतलुज नदी पर निर्मित है। इसकी क्षमता 402 मेगावाट है।
  • रामपुर परियोजना (Rampur Project)—यह जल विद्युत् परियोजना शिमला जिले के रामपुर बुशैहर नामक स्थान पर सतलुज नदी पर बनाई जा रही है। इस परियोजना को सतलुज जल विद्युत् निगम को सौंपा गया है। इसकी क्षमता 412 मैगावाट होगी। इसमें राज्य सरकार की भागीदारी 30 प्रतिशत रहेगी। इस परियोजना का कार्यान्वयन हिमाचल सरकार व सतलुज जल विद्युत् निगम के बीच क्रमश: 30% और 70% इक्विटी की भागीदारी पर किया जा रहा है।
  • कशांग चरण-I (Kashang Stage-1 56MW)- यह परियोजना सतलुज नदी की सहायक कशांग खड्ड पर किन्नौर जिले में लगाई जाएगी। यह परियोजना रिकांगपिओं से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। इस परियोजना के निरीक्षण और सर्वे पर काम चल रहा है। इस परियोजना पर 234.16 करोड़ रूपए की लागत आएगी। इसका निर्माण कार्य हिमाचल प्रदेश जल विद्युत् विकास निगम के हाथ में है।
  • पार्वती परियोजना – पार्वती परियोजना कुल्लू के समीप स्थित तीन दुर्गम घाटियों पार्वती, गड़सा व सैंज में स्थित है। यह हिमाचल की सबसे बड़ी परियोजना है तथा इसकी क्षमता 2051 मैगावाट होगी। इस पर लगभग 10 हजार करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इसे तीन चरणों पूरा किया जाना है। पहले चरण में 750 मैगावाट, दूसरा चरण में 800 मैगावाट तथा तीसरे चरण में 501 मैगावाट बिजली पैदा होगी। सबसे पहले द्वितीय चरण तथा इसके बाद तृतीय चरण का निर्माण कार्य होगा। प्रथम चरण का निर्माण इन दोनों के निर्माण के बाद होगा। दूसरे चरण के निर्माण के अन्तर्गत ऊंचा बांध बनाकर पार्वती नदी का पानी पुल्गा नामक स्थान की ओर मोड़ दिया जाएगा। जहां 30 किलोमीटर लम्बी तथा 6 मीटर ब्यास वाली सुरंग से सैंज स्थित पावर हाऊस तक लाया जाएगा। दूसरे चरण का काम पूरा होने के बाद तीसरे चरण का निर्माण कार्य होगा। इस चरण के लिए परियोजना के द्वितीय चरण से मिले जल को सैंज खड़ से मिलाया आएगा, फिर सैंज में 75 मीटर ऊंचे बांध के माध्यम से इसे 9.91 किलोमीटर लम्बी सुरंग द्वारा लारजी स्थित पावर हाऊस तक लाया जाएगा। इस पावर हाऊस में 501 मैगावाट बिजली का उत्पादन होगा। प्रथम चरण का निर्माण दूसरे तथा तीसरे चरण के पूरा होने के बाद पहले चरण का काम शुरू होगा। इस चरण के लिए डिब्बी बुखारी में 180 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा। 17 किलोमीटर लम्बी सुरंग से नगथान नामक स्थान पर स्थित भूमिगत पावर हाऊस में 750 मैगावाट बिजली पैदा होगी।
  • बिनवा हाइडल परियोजना (Binwa Hydel Project)—यह परियोजना कांगड़ा जिले के बैजनाथ के कार्यान्वित की गई है। इसमें 6 मैगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इस पर 12.82 करोड़ रुपये समीप उत्तराला खर्च हुए हैं।
  • गज परियोजना (Gaj Project)—यह कांगड़ा जिले में शाहपुर के नजदीक गज और ल्योण खड्डों के पानी से कार्यान्वित की गयी है। इससे 10.5 मैगावाट बिजली पैदा होगी। इस पर 40 करोड़ रुपये के लगभग खर्च हुआ है। गज खड्ड के किनारे बिठड़ी गांव के पास पावर हाऊस बनाया गया है।
  • बनेर परियोजना (Baner Project)—यह परियोजना धर्मशाला से 25 किलोमीटर दूर बनेर खड्ड के पानी से कार्यान्वित की गयी। इससे 12.5 मैगावाट बिजली पैदा होगी। इस पर 40.54 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। ये दोनों योजनाएँ मई-जून, 1996 में चालू की गई हैं।
  • लारजी हाइडल परियोजना (Larji Hydel Project)—यह परियोजना कुल्लू जिले में भुन्तर से थोड़ा दूर लारजी नामक स्थान पर ब्यास नदी के पानी से कार्यान्वित हुई है। इसके अतिरिक्त 45.3 मीटर ऊंचा बांध बना कर पानी को 15 किलोमीटर लम्बी और 8.5 मीटर ब्यास वाली सुरंग से ले जाकर गिराया गया है। इससे 126 मैगावाट बिजली उत्पादन पैदा होगी। इस परियोजना पर 662 करोड़ रुपये व्यय होने का अनुमान है।
  • खोली परियोजना (Khaull Project 9MW)- यह जल विद्युत् परियोजना कांगड़ा के शाहपुर तहसील में गज खड्ड की सहायक खोली नाले पर संकेन्द्रित है। इस परियोजना की जल विद्युत् उत्पादन क्षमता 12 मैगावाट है।
  • ऊहल हाईड्रो विद्युत् परियोजना (Uhel Project)—यह परियोजना मण्डी जिले के जोगेन्द्रनगर के समीप बन रही है। पहले चरण की ऊहल परियोजना 1 (शानन) और बस्सी परियोजना के बाद ऊहल परियोजना का चरण तीन का कार्य पूरा होने के बाद नेरी खड्ड में पानी का भी ऊहल चरण IV परियोजना में इस्तेमाल कर इसे बस्सी पावर हाऊस के जल के साथ मिलाकर 1250 मीटर लम्बी सुरंग बनाकर प्रयोग में लाया जाएगा। ऊहल तीसरे चरण का कार्य निजी क्षेत्र मैसर्ज बलारपुर उद्योग को दिया गया है। इस योजना द्वारा 12 मैगावाट विद्युत्उ त्पादन की क्षमता होगी।
  • बस्सी नाला विद्युत् परियोजना (Bassi Nallan Project)- यह प्रोजेक्ट जोगेन्द्रनगर के शानन जल विद्युत् गृह के जल पर आधारित है। इसकी क्षमता 60 मैगावाट है। इस विस्तार परियोजना के अन्तर्गत 5 यूनिट को तीन इकाइयां स्थापित की जानी हैं। जोगिन्द्रनगर स्थित बस्सी पावर हाऊस जो पहले से ही काम कर रहा है, के विस्तार के लिए योजना बनाई गई है। इसके तहत पावर हाऊस में एक ओर बिजली उत्पादक इकाई स्थापित की जायेगी, जिसकी उत्पादन क्षमता 15 मैगावाट होगी।
  • मलाणा परियोजना (Malana Project)- मलाणा परियोजना (80 मैगावाट) का कार्य मैसर्ज राजस्थान स्पिनिंग एण्ड वीविंग मिल्स ने पूरा कर लिया है। इस परियोजना पर कार्य 1998 को आरम्भ किया गया था। कुल लागत 332.71 करोड़ रुपए आई है। यह परियोजना कुल्लू जिले की मलाणा नामक गांव में जल विद्युत् उत्पादन कर रही है। इस जल विद्युत् परियोजना का कार्य निर्धारित समय अवधि से तीन वर्ष से भी कम रिकार्ड समय में पूरा किया गया था। मलाणा परियोजना के उत्पादित विद्युत् का संचार राष्ट्रीय ग्रिड 5 जुलाई 2001 से आरम्भ हो चुका है।
  • चमेरा परियोजना (Chamera Project)— यह परियोजना रावी नदी के ऊपर रख गांव में बांध बनाकर तैयार की गई है। चमेरा रावी नदी बेसिन की प्रमुख जल विद्युत् परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत जल विद्युत् उत्पादन क्षमता का लक्ष्य 540 मैगावाट रखा गया है। इस परियोजना का जल विद्युत् गृह सखी तथा स्वर्ण नदियों के संगम पर चम्बा शहर से 30 किलोमीटर दूर खारी नामक स्थान पर स्थित है। इस परियोजना का जल अधिकृत क्षेत्र 4725 वर्ग मीटर है, जिसमें 300 वर्ग मीटर हिमयुक्त क्षेत्र है। इस परियोजना के अन्तर्गत रावी नदी पर चमेरा गांव से बैराज बनकर जल थीन डैम में मिलाने की योजना है।
  • चमेरा दूसरा चरण (Chamera Project II)- चमेरा परियोजना की दूसरे चरण की क्षमता 300 मैगावाट है, जिसके तीन यूनिट हैं। इस प्रकार प्रत्येक की उत्पादन क्षमता 100 यूनिट है। इस परियोजना को राष्ट्रीय जल विद्युत् कारपोरेशन तथा कनाडा की सहायता से चम्बा में रावी नदी पर लगाया गया है। इस प्रोजैक्ट से भी हिमाचल प्रदेश को 12% बिजली प्राप्त होगी। इस परियोजना की अनुमानित लागत 1400 करोड़ के लगभग होगी।
  • बेरा सियूल परियोजना (Baira Siul Project)- यह जल विद्युत् परियोजना रावी नदी की सियूल, बेरा और बलव सहायक जलधाराओं के उपयोग के लिए क्रियान्वित की गई है। इस परियोजना की कुल लागत 1983 के अनुमान के आधार पर 25 करोड़ है। इस परियोजना के तहत बेरा जलधारा का जल सुरंग की सहायता से चट्टानी फिलिंग डैम खकारी में लगाया जाएगा। उपरोक्त सभी जल धाराओं का जल पतियारी नामक स्थान पर जल विद्युत् उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
  • होली जल विद्युत् परियोजना (Holi Project)- इस परियोजना में चम्बा जिले में रावी नदी की सहायक नाले होली का जल विद्युत् उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाएगा। इस परियोजना में 3 यूनिट प्रत्येक 2.5 मैगावाट क्षमता के होंगे। इस प्रकार कुल उत्पादन क्षमता 7.5 मैगावाट होगी। इस योजना के अन्तर्गत लगभग 370 क्यूसिक मीटर पानी को दूसरी ओर मोड़कर 160 मीटर की ऊँचाई से गिराकर विद्युत् उत्पादन इससे चम्बा के भरमौर क्षेत्र को जल विद्युत् प्राप्त होगी।
  • हिबड़ा अथवा हिबरा जल विद्युत् प्रोजैक्ट (Hibra Project)—यह परियोजना चम्बा जिले में टुण्डाह पर रावी नदी के संगम पर क्रियान्वित की जाएगी। इस परियोजना को यू. एस. ए की निजी क्षेत्र की कम्पनी मैसर्ज हरजा इंजीनियरिंग कम्पनी को सौंपा गया है। इस परियोजना की क्षमता 231 मैगावाट मापी गई है।
  • आन्ध्रा हाईडल प्रोजैक्ट (Andhra Project)—यह परियोजना शिमला जिले के रोहडू स्थान पर चिड़गाव में लगाई गई है। यह यमुना नदी की सहायक नदी आन्ध्र खड्ड के जल का प्रयोग करके बनाई गई है। इसकी कुल बिजली उत्पादन क्षमता 16.5 मैगावाट है। इस परियोजना के 5.5 मैगावाट क्षमता के तीन यूनिट हैं। इसका उत्पादन 1987-88 से किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत परम्परागत खाई के द्वारा पानी को परिवर्तित करके आन्ध्र खड्ड के जल को समुद्र तल से 2665 मीटर की ऊँचाई से ऊपर उठाया गया तथा आधा किलोमीटर उपजलघाट गोनसारी में पहुंचाया जाएगा। आन्ध्रा विद्युत् की ट्रांसमिशन को राज्य स्तरीय ग्रिड को (रामपुर के निकट) नौगाली जल विद्युत् गृह के साथ मिलाया जाएगा।
  • धमवाड़ी सुन्द्रा जल विद्युत् परियोजना (Dhamwari Project)– इस परियोजना की जल विद्युत् उत्पादन क्षमता 70 मैगावाट है। यह प्रोजैक्ट शिमला जिले में यमुना नदी की प्रमुख सहायक नदी पब्बर नदी पर आन्ध्रा परियोजना के इर्द-गिर्द लगायी गयी है। इसको स्वीडन के वित्तीय तथा तकनीकी सहायता से लगाया जाएगा। इसमें जल विद्युत् उत्पादन की चार इकाइयां 1-5 मैगावाट प्रत्येक होंगी। यह प्रोजैक्ट निजी क्षेत्र की कम्पनी मैसर्ज हरजा (Harza) इंजीनियरिंग कम्पनी को सौंपा गया है। इस पर कुल 170 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
  • साबड़ा कुण्डा हाइड्रो विद्युत् परियोजना ( 70 मैगावाट) (Sabra Kunda Projeet)- यह परियोजना शिमला जिला में पब्बर नदी पर जुब्बल तहसील में हाटकोटी नामक स्थान पर स्थित है। इस परियोजना को हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ संयुक्त रूप से भाखड़ा-ब्यास प्रबन्धन बोर्ड (हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान) मिलकर पूरा करेंगे।
  • गिरी-बाटा प्रोजैक्ट (60 मैगावाट) (Giri Bata Project)-यह परियोजना की योजना 1964 में तैयार की गई थी। यह परियोजना हिमाचल प्रदेश की सबसे प्रथम प्रस्तावित प्रमुख परियोजना थी। इसे यमुना नदी की सहायक नदी गिरी एवं बाटा जलधाराओं को जल विद्युत् उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाएगा। इस परियोजना द्वारा 60 मैगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। यह प्रोजैक्ट सिरमौर जिले की पांवटा घाटी में लगाया गया है। इसे गिरिनगर जल विद्युत् परियोजना भी कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश बोर्ड के अधीन है।
  • थिरोट जल विद्युत् प्रोजैक्ट (Thirot Project)- यह परियोजना चिनाब नदी की सहायक नदी थिरोट नाले पर स्थित है। यह परियोजना हिमाचल प्रदेश के लाहौल जिले में क्रियान्वित है। थिरोट परियोजना पहले एक मैगावाट की तीन ईकाइयों के लिए प्रस्तावित की गई थी परन्तु अब प्रत्येक की क्षमता बढ़ा कर (1.5×3-4.5) मैगावाट कर दी गई है। इस परियोजना से प्राप्त जल विद्युत् का उपयोग लाहौल घाटी में किया जाता है।
  • राओली परियोजना- यह जिला चम्बा में चिनाब नदी पर है। इसकी क्षमता 500 मेगावाट है।
  • मनछेतरी परियोजना- यह जिला चम्बा में रावी नदी पर है। इसकी क्षमता 100 मेगावाट है।
  • गुम्मा परियोजना- यह जिला शिमला में गुम्मा खड्ड पर है। इसकी क्षमता 3 मेगावाट है।
  • होली परियोजना-यह जिला चम्बा में रावी नदी पर है। इसकी क्षमता 3 मेगावाट है।
  • यमुना परियोजना- यह जिला सिरमौर में है। इसकी क्षमता 131.57 मेगावाट है। उत्तराखण्ड के सहयोग से यमुना नदी पर बनाई गई है।
  • पोंग परियोजना- यह जिला कांगड़ा में ब्यास नदी पर है। इसकी क्षमता 396 मेगावाट है। BBMB (भाँखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोड) द्वारा निर्मित है।
  • देहर परियोजना- यह जिला काँगड़ा में देहर खड्ड पर BBMB द्वारा निर्मित है। इसकी क्षमता 900 मेगावाट है।
  • भाखड़ा परियोजना- यह जिला बिलासपुर में सतलुज नदी पर है। इसकी क्षमता 1325 मेगावाट है। यह 1963 में बनकर तैयार हुआ।
  • स्वार कुड्डू परियोजना- यह जिला शिमला में पब्बर नदी की सहायक स्वार कुड्डू पर निर्मित है। इसकी क्षमता 111 मेगावाट है।
  • सेंज परियोजना- यह जिला कुल्लू में ब्यास नदी की सहायक नदी सेंज पर निर्मित है। इसकी क्षमता 100 मेगावाट है। यह NHPC द्वारा निर्मित है।
  • आलयन दुहंगन परियोजना- यह जिला कुल्लू में ब्यास नदी की सहायक पर निर्मित है। इसकी क्षमता 192 मेगावाट है। यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • हड़सर परियोजना- यह जिला चम्बा में रावी पर निर्मित है। इसकी क्षमता 60 मेगावाट है।
  • स. टिडोंग परियोजना- यह जिला किन्नौर में सतलुज पर निर्मित है। इसकी क्षमता 100 मेगावाट है।
  • चिडगाव मझगाँव परियोजना- यह जिला शिमला में आन्ध्रा नदी पर निर्मित है। इसकी क्षमता 46 मेगावाट है।
  • रेणुका (परशुराम सागर बाँध) परियोजना- यह जिला सिरमौर में गिरी बाटा पर निर्मित है। इसकी क्षमता 40 मेगावाट है। यह राज्य सरकार की परियोजना है।
  • पटकरी परियोजना- यह जिला मण्डी में ब्यास की सहायक नदी पटकरी पर निर्मित है। इसकी क्षमता 16 मेगावाट है।
  • बुधिल परियोजना- यह जिला चम्बा में रावी की सहायक नदी बुधिल पर निर्मित है। इसकी क्षमता 70 मेगावाट है।
  • खाव परियोजना- यह जिला किन्नौर में सतलुज पर निर्मित है। इसकी क्षमता 1020 मेगावाट है। यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • जांगी थोपन परियोजना- यह जिला किन्नौर में सतलुज पर निर्मित है। इसकी क्षमता 960 मेगावाट है। यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • छांगो यांगटाग परियोजना- यह जिला किन्नौर में सतलुज पर निर्मित है। इसकी क्षमता 140 मेगावाट है। यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • सकटी परियोजना- यह जिला किन्नौर में सतलुज पर निर्मित है। इसकी क्षमता 1.5 मेगावाट है।
  • सेली परियोजना- यह जिला चम्बा में चिनाब पर निर्मित है। इसकी क्षमता 454 मेगावाट है।
  • रुक्ति परियोजना- यह परियोजना किन्नौर में है। इसकी क्षमता 1.50 मेगावाट है।
  • नोगली परियोजना- यह परियोजना शिमला में है। इसकी क्षमता 22.50 मेगावाट है।
  • खौली परियोजना- यह परियोजना कांगड़ा में है। इसकी क्षमता 12 मेगावाट है।
  • साल परियोजना- यह परियोजना चम्बा में है। इसकी क्षमता 2 मेगावाट है।
  • धौलासिद्ध परियोजना- यह परियोजना हमीरपुर में ब्यास नदी पर है। इसकी क्षमता 66 मैगावाट है। यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • छतरू परियोजना- लाहौल-स्पीति- चिनाब- 108 मैगावट- यह राज्य सरकार की परियोजना है।
  • सेली परियोजना- चम्बा (भरमौर)- चिनाब- 454 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • कुठेर परियोजना- चम्बा (भरमौर)- रावी- 260 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • तांगनू रोमाई जलविद्युत परियोजना- यह शिमला जिले में पब्बर नदी में है। इसकी क्षमता 50 MW है।
  • सरबरी जलविद्युत परियोजना (व्यास), रूक्टी जलविद्युत परियोजना भी है।
  • इनके अतिरिक्त कुछ अन्य परियोजना है-
  • टौंस- कुल्लू-10 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • अघर जोएनर- 12 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • सुमेज- 14 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • नियोगल- 15 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • जोगिनी- 16 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • नंती- 14 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • कुर्पी- 2.67 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • लूहरी व धौवासिद्ध- 412 मैगावट- यह निजी क्षेत्र की परियोजना है।
  • देवी कोठी- 16 मैगावट,
  • फोजल- 9 मैगावट,
  • पौडीताल- लाहौल-स्पीति-24 मैगावट,
  • लम्बा डूहग- मण्डी- 25 मैगावट,
  • बड़ागांव- काँगड़ा- 24 मैगावट,
  • रौरा- किन्नौर- 8 मैगावट, (रौरा खड्ड) सतलुज
  • रायसन- 18+18 मैगावट,
  • सोरंग- किन्नौर- 100 मैगावट,
  • तिदौंग- किन्नौर- 100 मैगावट,
  • साई कोठी- चम्बा- 15+16.50 मैगावट,
  • चांचू- चम्बा- 36 मैगावट,
  • कूट- शिमला- 24 मैगावट,
  • कुठाहर- 4.7 मैगावट,
  • टिक्कर- 3.5 मैगावट,
  • बटेसरी- 60 कि.व.,
  • नई नौगली- 9 मैगावट

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