1. बाबर—
बाबर ने 1525 में काँगड़ा के निकट ‘मलौट’ में अपनी चौकी स्थापित की। बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल शासन की स्थापना की।
2. हुमायूँ और शेरशाह सूरी—-
उसके बाद उसका पुत्र हुमायूँ गद्दी पर बैठा। अफगान राजा शेर खान (शेरशाह सूरी) ने हुमायूं को 1539 ई में चौसा की और फिर 1540 ई में कन्नौज (बिलग्राम) की लड़ाई में हरा दिया। शेरशाह सूरी ने अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपने जनरल खवास खान को कांगड़ा पहाड़ी पर भेजा। विजय के बाद पहाड़ी क्षेत्र को हामिद खान काकर के अधिकार में रखा गया था, लेकिन अधिकांश इतिहासकारों ने इस विजय का उल्लेख नहीं किया है, वे एक बिंदु पर सहमत हुए कि जहांगीर पहला शासक था जिसने 1620 ईस्वी में कांगड़ा किले पर कब्जा किया था।
3. अकबर—
अकबर ने 1556 ई. में सिकंदर शाह को पकड़ने के लिए नूरपुर में अपनी सेना भेजी क्योंकि नूरपुर के राजा भक्तमल की सिंकदर शाह से दोस्ती थी। अकबर पहाड़ी राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए उनके बच्चों या रिश्तेदारों को दरबार में बंधक के तौर पर रखता था। अकबर ने काँगड़ा के राजा जयचंद को बंधक बनाया। जयचंद के पुत्र विधिचंद ने अकबर के विरूद्ध नूरपुर के राजा तख्तमल के साथ मिलकर विद्रोह किया। अकबर ने बीरबल को हुसैन कुली खान के साथ मिलकर इस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा।
अकबर ने 1572 ई. में टोडरमल को पहाड़ी रियासतों की जमीनें लेकर एक शाही जमींदारी स्थापित करने के लिए नियुक्त किया। इसमें काँगडा के 66 गाँव और चम्बा के रिहलू, छेरी, पथियार और घरोंह क्षेत्र शामिल थे।राजा जयचन्द की 1585 में मृत्यु के बाद उसका बेटा विधिचंद राजा बना। राजा विधीचंद ने अपने पुत्र त्रिलोक चंद को बंधक के तौर पर मुगल दरबार में रखा। चम्बा का राजा प्रताप सिंह वर्मन अकबर का समकालीन था। वह मुगलों के प्रति समर्पित था। सिरमौर का राजा धर्म प्रकाश (1538-70 A.D.) अकबर का समकालीन था। बासु देव ने नूरपुर रियासत की राजधानी पठानकोट से धमेरी स्थानांतरित की।
4.जहाँगीर-
जहाँगीर 1605 ई. में गद्दी पर बैठा। काँगड़ा का राजा विधीचन्द का 1605 ई. में मृत्य हुई और उसका पुत्र त्रिलोकचंद गद्दी पर बैठा। जहाँगीर ने 1615 ई. में कांगड़ा पर कब्जा करने के लिए नूरपुर (धमेरी) के राजा सुरजमल और शेख फरीद मुर्तजा खान को भेजा परन्तु दोनों में विवाद होने और मुर्तजा खान की मृत्यु होने के बाद काँगडा किले पर कब्जा करने की योजना को स्थगित कर दिया गया। जहाँगीर ने 1617 ई. में फिर नूरपुर के राजा सूरजमल और शाह कुली खान मोहम्मद तकी के नेतृत्व में काँगडा विजय के लिए सेना भेजी। राजा सूरजमल और शाह कुली खान में झगड़ा हो जाने के कारण कुली खान को वापिस बुला लिया गया। राजा सूरजमल ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहाँगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने के लिए राजा राय विक्रमजीत और अब्दुल अजीज को भेजा। राजा सूरजमल ने मानकोट (माऊकोट या माऊ) किले में शरण ली। मानकोट किले का निर्माण सलीम शाह सुर ने किया था। मानकोट किले से उसने नूरपुर और इस्राल किले में शरण ली जो चम्बा रियासत के अधीन था। वहां से वह चम्बा गया। चम्बा के राजा प्रताप वर्मन ने सूरजमल को समर्पण करने का सुझाव दिया परन्तु 1619 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। काँगड़ा किला 1620 ई. में मुगलों के अधीन आ गया। जहाँगीर को 20 नवंबर, 1620 ई. को काँगड़ा किले पर कब्जे की खबर मिली। काँगड़ा किले को जीतने में राजा सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह ने मुगलों की मदद की। काँगड़ा किले पर नवाब अलीखान के नेतृत्व में मुगलों का कब्जा हुआ और 1783 ई. तक कब्जा रहा। जहाँगीर 1622 ई. में धमेरी (नूरपूर) आया। उसने अपनी पत्नी नूरजहाँ के नाम पर धमेरी का नाम नूरपुर रखा। काँगड़ा किले के एक दरवाजे का नाम ‘जहाँगीरी’ दरवाजा‘ रखा गया। जहाँगीर ने काँगड़ा किले के अंदर एक मस्जिद का निर्माण करवाया। जहाँगीर के समय चम्बा के राजा जनार्धन और जगत सिंह के बीच ‘धलोग का युद्ध’ 1623 ई. में हुआ जिसमें जगत सिंह विजयी हुआ।
बाद में जनार्दन को एक संधि संदेश में जगत सिंह ने चंबा में मुगल दरबार में मिलने के लिए आमंत्रित किया। शकरहित जनार्दन कुछ अनुयायियों के साथ दरबार आए। जब वो बातचीत कर रहे थे, तो जगत सिंह ने अचानक अपने खंजर को खींचकर जनार्दन के सीने में मार दिया। जनार्दन की कमर में भी खंजर था लेकिन म्यान को एक रस्सी द्वारा बांधा था, इस वजह से वह अपनी रक्षा के लिए इसे समय पर न खींच सका। उसके बाद से चंबा के राजाओं ने खंजर को म्यान में ढीला रखना शुरू कर दिया। जनार्दन की मृत्यु की तारीख संभवतः 1623 थी। जगत सिंह द्वारा मारे जाने के तथ्य की पुष्टि बादशाहनामा में उस आशय के एक बयान से होती है। यह त्रासदी चंबा में महल में हुई थी।
चम्बा पर 1623 ई. से लेकर 2 दशक तक जगत सिंह का कब्जा रहा। जगत सिंह मुगलों का वफदार था। जगत सिंह ने 1626 ई के आसपास तारागढ़ किला बनाया था। उसने इसे सुरक्षा के लिए एक सुरक्षित स्थल के रूप में बनाया था। इसे तीन हिस्सों में बनाया गया था और सभी तीनों दीवार के दीवारों में आक्रमण नहीं किया जा सकता था। सिरमौर का राजा बुद्धि प्रकाश (1605-1615) जहाँगीर का समकालीन था। काँगड़ा किले का पहला मुगल किलेदार नवाब अलीखान था।
5. शाहजहाँ-
शाहजहाँ के शासन काल में नवाब असदुल्ला खान और कोच कुलीखान काँगड़ा किले के मुगल किलेदार बने। कोच कुलीखान 17 वर्षों तक मुगल किलेदार रहा। उसे बाण गंगा नदी के पास दफनाया गया था। सिरमौर का राजा मन्धाता प्रकाश शाहजहाँ का समकालीन था। उसने मुगलों के गढ़वाल अभियान में कई बार सहायता की थी। मेदनी प्रकाश ने गुरु गोविंद सिंह को सिरमौर बुलाया जिन्होंने पावन्टा साहिब की स्थापना की।
6.औरंगजेब-
औरंगजेब के शासनकाल में काँगड़ा किले के मुगल किलेदार सैयद हुसैन खान, हसन अब्दुल्ला खान और नवाब सैयद खलीलुल्ला खान थे। औरंगजेब का समकालीन सिरमौर का राजा शुभम प्रकाश था। चम्बा के राजा चतर सिंह ने 1678 ई. में औरंगजेब के चम्बा के सारे मन्दिरों को गिराने के आदेश को मानने से मना कर दिया। उसने गुलेर, बसौली और जम्मू के राजाओं के साथ मिलकर पंजाब के मुगल सरदार मिर्जा रियाज बेग को पराजित किया और अपने क्षेत्रों को वापस प्राप्त किया।
नादौन का युद्ध नादौन में, बिलासपुर के राजा भीम चंद (कहलूर) और अलिफ खान के नेतृत्व में मुगलों के बीच 1690-91 में लड़ा गया था। राजा भीम चंद को गुरु गोविंद सिंह (दसवें सिख गुरु) और अन्य पहाड़ी सरदारों ने समर्थन दिया था, जिन्होंने मुगल सम्राट को भेंट देने से इनकार कर दिया था। मुगलों को कांगड़ा के राजा और बिजरवाल के राजा दयाल का समर्थन था। लड़ाई में भीम चंद और उनके सहयोगियों की जीत हुई।
7.मुगलों का पतन और घमण्डचंद-
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों का पतन शुरू हो गया। अहमदशाह दुर्रानी ने 1748 ई. से 1788 ई. के बीच 10 बार पंजाब पर आक्रमण कर मुगलों की कमर तोड़ दी। राजा घमण्डचंद ने इस मौके का फायदा उठाकर काँगड़ा और दोआब के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। काँगड़ा किला अब भी मुगलों के पास था। नवाब सैफ अली खान काँगड़ा के अंतिम मुगल किलेदार थे। अहमद शाह दुर्रानी ने 1759 ई. में घमण्डचंद को जालंधर दोआब का नाजिम बना दिया। घमण्डचन्द का सतलुज से रावी तक के क्षेत्र पर एकछत्र राज हो गया।
इस्राल किला / Isral Fort—
यह किला निश्चित रूप से स्थित नहीं है, लेकिन यह कोटला से बहुत दूर टुंडी परगना में इस्राल का बासा के पास पेरिगढ़ का छोटा किला हो सकता है। इलियट के इतिहास में तारागढ़ को संदर्भित किला माना जाता है। तारागढ़ का निर्माण जगत सिंह पठानिया द्वारा किया गया था, जो सूरज मल की मृत्यु के बाद नूरपुर के राजा बने। इसलिए तारागढ़ के किले को इस्राल के किले के रूप में नहीं लिया जा सकता है। निश्चित रूप से चंबा क्षेत्र में नूरपुर के उत्तर में एक किला था, नूरपुर और तारागढ़ किलों के अनुरूप इस्राल का एक किला था। यह नूरपुर किले से तारागढ़ के ठीक आधे रास्ते पर, सुलयाली गाँव से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। यह नाग पाल द्वारा उनके भाई सुख पाल की जीत के सम्मान में स्थापित किया गया था। इस किले में नाग पाल की ताजपोशी A.D. 1392 के बारे में की गई थी।