हिमाचल प्रदेश के इतिहास की प्राचीन काल के सिक्कों, शिलालेखों, साहित्य, यात्रा वृत्तांत और वंशावलियों के अध्ययन के द्वारा हम जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
1.पुरातात्विक स्रोत —
हिमाचल प्रदेश के इतिहास के लिए पुरातात्विक स्रोतों का बहुत महत्व है। पुरातात्विक स्रोतों में पत्थर के औजार, सिक्के, शिलालेख स्मारक और मूर्तियां शामिल हैं, जहां खुदाई की गई है उसमें कांगड़ा जिले के गुलेर, ढलियारा, देहरा, मसरूर शामिल हैं। ज्वालामुखी, देहरा-गोपीपुर और नूपुर के क्षेत्रों में किया गया अन्य सर्वेक्षण प्रारंभिक पाषाण अवस्था के बारे में संकेत देते हैं।
अन्य संभावित स्थल में मंडी जिले के बल्ह घाटी, सलाणु, सरकाघाट के पास नवाही, शिवा बदार, निरथ, दत्तनगर, शोली, सराहन, निरमंड, हाटकोटी, चितकुल, नग्गर, बजौरा, जगतसुख शामिल हैं।
i) सिक्के– हिमाचल प्रदेश में सिक्कों की खोज का काम हि.प्र. राज्य संग्रहालय शिमला की स्थापना के बाद गति पकड़ने लगा। भूरी सिंह म्यूजियम चम्बा और राज्य संग्रहालय शिमला में त्रिगर्त, औदम्बर, कुलूत और कुनिंद राजवंशों के सिक्के रखे गये हैं। शिमला राज्य संग्रहालय में रखे 12 सिक्के अर्की से प्राप्त हुए हैं। अपोलोडोटस के 21 सिक्के हमीरपुर के टप्पामेवा गाँव से प्राप्त है जबकि 31 सिक्के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी में मिले हैं । चम्बा के लचोरी और सरोल से इण्डो-ग्रीक के कुछ सिक्के प्राप्त हुए हैं। कुल्लू का सबसे पुराना सिक्का पहली सदी में राजा विर्यास द्वारा चलाया गया था।
ii) शिलालेख/ ताम्र-पत्र-
काँगड़ा के पथयार और कनिहारा के अभिलेख, हाटकोटी में सूनपुर की गुफा के शिलालेख, मण्डी के सलाणु के शिलालेख द्वारा हम हिमाचल प्रदेश के प्राचीन समय की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। भूरी सिंह म्यूजियम चम्बा में चम्बा से प्राप्त 36 अभिलेखों को रखा गया है जो कि शारदा और टांकरी लिपियों में लिखे हुए हैं। कुल्लू के शलारू अभिलेखों से गुप्तकाल की जानकारी प्राप्त होती है।
(iii) पत्थर के शिलालेख—
पत्थर के शिलालेखों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- रॉक शिलालेख, फाऊन्टेन शिलालेख, स्लैब शिलालेख, सती पत्थर शिलालेख। इन शिलालेखों को विभिन्न लिपि में लिखा गया है, जैसे शारदा, खरोष्ठी, टांकरी, कुटीला, नागरी, शंखा, भोटिया और सिध्दमातृका। चंबा क्षेत्र में सबसे अधिक शिलालेख (36) पाए गए हैं। भूरी सिंह संग्रहालय चंबा में इन शिलालेखों को रखा गया है।
2. साहित्यिक स्रोत–
i) रामायण और महाभारत के अलावा ऋग्वेद में हिमालय में निवास करने वाली जनजातियों का विवरण मिलता है। तारीख-ए-फिरोजशाही‘ और ‘तारीख-ए-फरिस्ता‘ में नागरकोट किले पर फिरोजशाह तुगलक के हमले का प्रमाण मिलता है।
तुजुक-ए-जहाँगीरी‘ में जहाँगीर के काँगड़ा आक्रमण तथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी‘ से तैमूर लंग के शिवालिक पर आक्रमण की जानकारी प्राप्त होती है।
(ii) यात्रा-वृत्तांत-
हि.प्र. का सबसे पुरातन विवरण टॉलेमी ने किया है जिसमें कुलिन्दों का वर्णन मिलता है। चीनी यात्री हेनसांग 630-648 A.D. तक भारत में रहा। इस दौरान वह कुल्लू और त्रिगर्त भी आया। थामस कोरयाट और विलियम फिंच ने औरंगजेब के समय हि.प्र. की यात्रा की। फॉस्टर ने 1783, विलियम मूरक्रॉफ्ट ने 1820-1822, मेजर आर्चर ने 1829 के यात्रा-वृत्तांतों में हिमाचल के बारे में लिखा है।
(iii) वंशावलियाँ-
वंशावलियों की तरफ सर्वप्रथम विलियम मूरक्राफ्ट ने काम किया और काँगड़ा के राजाओं की वंशावलियाँ खोजने में सहायता की। कैप्टन हारकोर्ट ने कुल्लू की वंशावली प्राप्त की। बाद में कनिंघम ने काँगड़ा, चम्बा, मण्डी, सुकेत और नूरपुर राजघरानों की वंशावलियाँ खोजी।