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पुर्व मध्यकालीन हिमाचल का इतिहास

सिकन्दर का आक्रमण—

सिकन्दर ने ई. पू० 326 वर्ष के लगभग भारत पर आक्रमण किया था और वह विपाशा यानि व्यास नदी के किनारे तक पहुंचा था जहां से आगे उसके सैनिकों ने बढ़ने से इन्कार कर दिया था। इसका कारण एक तो यह था कि हिमालीय क्षेत्र दुर्गम थे और दूसरे यहां के आयद्धजीवी जनपदों ने उसकी सेना के दांत खट्टे कर दिए होंगे। किंबन्दती के अनुसार सिकन्दर की सेना के 6 सैनिक कुल्लू के मलाणा गांव में बस गए थे और मलाणा निवासी अपने आपको उनका वंशज मानते हैं। सिकंदर का सेनापति ‘कोइनोस’ था। सिकंदर ने व्यास नदी के तट पर अपने भारत अभियान की निशानी के तौर पर बाहर स्तूपों का निर्माण करवाया था।

मौर्यकाल :-

सिकन्दर के आक्रमण के बाद चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य (324 ई. पू0 से 300 ईपूर्व) तक भारत के अधिकांश भाग को जीत कर महाराजा बना। यह कहा जाता है कि नंदवंश को समाप्त करने के लिए चाणक्य ने सबसे पहले उस समय जालंधर-त्रिगर्त के राजा पर्वतक से संधि कर सहायता मांगी थी। किरात, कुलिंद और खश आदि युद्धप्रिय जातियों के लोगों को चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में भर्ती किया गया था। तत्कालीन कुलिंदराज्य को मौर्य राज्य के पूर्वी शीर्ष में होने के कारण शिरमौर्य की संज्ञा दी गई थी जो कालान्तर में सिरमौर बन गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जहां त्रिगर्त और कुलिंद आदि राज्यों ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता की, विशाखादत्त के मुद्रा-राक्षस नाटक के अनुसार कुल्लूत के राजा चित्रवर्मन सहित 5 राजाओं ने मिलकर उसका विरोध किया था। चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र अशोक महान ने युद्ध विजय को छोड़ कर धर्म-विजय अभियान चलाया और बुद्ध-धर्म का प्रचार कियाकशमीर और नेपाल के मध्यवर्ती क्षेत्र में उसने मझिम्म और 4 बौद्ध भिक्षुओं को भेजा, जिन्होने महावंश के अनुसार हिमालीय क्षेत्रों सहित 5 राज्यों में बुद्ध धर्म का प्रचार किया। देहरादून के समीप कालसी में अशोक-कालीन शिलालेखों और कुल्लू में पाए जाने वाले बौद्ध-स्तूपों से अशोक के इन क्षेत्रों पर प्रभुत्व का पता चलता हैचीनी यात्री ह्यूनसांग (629 ई.-644 ई.) ने अपने यात्रा संस्मरणों सम्बन्धी पुस्तक सी-यू की में कुल्लू के स्तूपों का वर्णन किया है

शुंग-काल :-

मौर्य वंश के अन्तिम शासक बृहद्रथ का उसके सेनापति पुष्यमित्र ने वध कर दिया और शुंग वंश की स्थापना की। इस वंश का समय 187 ई. पू0 से 75 ई. पू0 तक माना जाता है। यद्यपि हिमाचलीय क्षेत्रों पर मौर्यों का प्रभुत्व भी सांकेतिक ही था क्योंकि त्रिगर्त के राजा पर्वतक से उनकी मैत्री थी और कुल्लूत के राजा चित्रवर्मन ने वैसे ही उनका विरोध किया था परन्तु शुंगों के समय यह प्रभुत्व भी समाप्त हो गया। शुंग राजा स्थानीय रियासतो को लम्बे समय तक अपने अधीन नहीं रख पाए थे।क्योंकि कुछ ही समय उपरांत इन रियासतों ने अपने सिक्के जारी करने शुरू कर दिए थे।

कुषाण काल :-
शुंगों के बाद भारत वर्ष पर महत्वपूर्ण शासन कुशाणों का हुआ जिसका समय 20 ई. से 225 ई तक माना जाता है। इस वंश के कनिष्क और हुविष्क नामक दो ही शक्तिशाली शासक हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इन दोनों शासकों ने हिमालीय जनपदों को अधीनस्थ किया था क्योंकि उस समय के इन जनपदों के अपने कोई सिक्के नहीं मिलते। इसका अन्य प्रमाण इस बात से मिलता है कि कनिष्क ने जो बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था, चौथी बौद्ध महासभा का आयोजन किया थाइस सभा के आयोजन का स्थान जालंधर मानते हैं जो त्रिगर्त से ही सम्बन्धित था। कई विद्वानों ने इस सभा के आयोजन को श्रीनगर में होना कहा है परन्तु यह सत्य प्रतीत नहीं होता। परन्तु जैसे ही कुशाण शक्ति क्षीण हुई, हिमालीय पहाड़ों के कुलिंदों और मैदानों के आर्जुनेय आदि संघों ने उन्हें निकाल फैैंका। यद्यपि कुशाणों का शासन काल लम्बा नहीं था परन्तु इन्होंने पहाड़ी जनपदों को काफी कमजोर कर दिया। कालका कसौली सड़क पर 383 तांबे के सिक्कों का मिलना तथा कांगड़ा जिला के कनिहारा में कनिष्क के एक सिक्के का मिलना कुशान शासकों के विस्तृत क्षेत्राधिकार का बोध करवाता है

गुप्त काल :-
उसके बाद चौथी शताब्दी में भारत वर्ष में गुप्त-वंश का राज्य स्थापित हुआ। इस वंश के समुद्रगुप्त (338-375 ई) और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (375-414 ई) प्रसिद्ध व शक्तिशाली राजा हुए। इन्होंने सारे भारत पर अपना अधिपत्य जमाया। पहाड़ी क्षेत्रों को कुचल कर इन्होंने यहां के शासकों व जनपदों को अपना अधीनस्थ बनाया। चम्बा के लक्ष्मी नारायण मन्दिर में गुप्तकालीन अवशेष पाए गए हैं। परन्तु गुप्तों की शक्ति क्षीण होने के बाद पहाड़ी राज्य भी स्वतन्त्र हो गए और अब जनपदों की बजाए, भारत के केन्द्र व अन्य राज्यों की भांति एकतंत्रीय शासन की स्थापना हुई। यहां तक कि पुराने मावियों के वंशजों ने भी जहां सम्भव हुआ, अपनी ‘मवाणा’ रियासतें पुनर्जीवित कर लीं। अन्य कई राणाओं और ठाकुरों ने अपनी अलग-अगल रियासतें स्थापित कर ली। इसी समय हिमालयी पहाड़ों के चम्बा में 550 ई. के आस-पास राजा मेरूवर्मन द्वारा (चम्बा के) भरमौर में ब्रह्मपुर नामक राज्य की स्थापना की गई। इसे आधुनिक काल में भरमौर के नाम से जाना गया

हर्षवर्धन-काल :-
606 ई. से 647 ई. तक भारतवर्ष में हर्षवर्धन का राज्य हुआ। उसने भी पहाड़ों पर अपना आधिपत्य जमाया। इसी समय चीनी यात्री ह्यू्वेनसांग भारत आया और 629 ई. से 644 ई. तक भारत के विभिन्न भागों में घूमा। वह 635 ई. में जालंधर व त्रिगर्त आया, उसके बाद कुल्लू और लाहौल गया। इन इलाकों का वर्णन उसने अपने संस्मरणों में किया है।

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