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हिमाचल प्रदेश में स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना:—
देश की स्वतत्रंता के लिये आन्दोलन चलाने वालों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इण्डियन नेशनल कांग्रेस) का प्रथम स्थान रहा है। कांग्रेस के गठन की कल्पना भारतीय सेवा से अवकाश प्राप्त एक स्काटलैण्डवासी एलन ऑकटेवियन ह्यूम ने शिमला में जाखू की पहाड़ी पर बने अपने निवास स्थान, ‘रॉथनी कासल‘ में मार्च 1885 ई. को की थी। इसका पहला अधिवेशन बम्बई में 28 दिसम्बर 1885 ई. को गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज के हाल में हुआ। मुख्य प्रतिनिधिों में शिमला से ए. ओ. हयूम थे। सम्मेलन का सभापतित्व बैरिस्टर व्योमेश चन्द्र बैनर्जी ने किया

गदर पार्टी :—
वर्ष 1913 ई में अमरीका में विभिन्न भारतीय समुदायों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में ‘इण्डियन एसोसिएशन‘ नामक संगठन स्थापित किया और उसके प्रमुख नेता लाला हरदयाल थे। शीघ्र ही इसका नाम बदल कर गदर पार्टी रख दिया गया। इसकी कई देशों में शाखायें थी। अमरीका में साप्ताहिक अखबार ‘गदर’ कई भारतीय भाषाओं में निकालते थे।

स्वाधीनता आन्दोलन की शुरुआत—
हिमाचल प्रदेश के प्रथम देश भक्त बाबा लछमण दास आर्य ने वर्ष 1905 ई में राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में प्रवेश किया। वह अपनी पत्नी दुर्गाबाई आर्य के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े। 1906 ई में लाला लाजपतराय मण्डी आए। सन् 1906 ई में बुशहर रियासत में किसान आन्दोलन हुआ।

मण्डी रियासत में विद्रोह–
मण्डी रियासत में 1909 ई में बहुत भ्रष्टाचार थाराजा भवानी सेन का वज़ीर जीवानन्द पाधा भ्रष्ट प्रशासक था। वह किसानों का अत्याधिक आर्थिक शोषण करता रहा। सरकाघाट क्षेत्र के शोभा राम के नेतृत्व में लोगों ने विद्रोह कर दिया। दिसम्बर 1909 ई में मण्डी के बल्ह क्षेत्र में डोडावन के किसानों ने आन्दोलन किया। इस आन्दोलन के नेता वडसू गांव के सिद्धू खराड़ा थे।

मण्डी षडयन्त्र (1914-15)—-
लाला हरदयाल ने सैनफ्रांसिस्को (यू.एस.ए.) में गदर पार्टी की स्थापना की। मण्डी षड्यंत्र वर्ष 1914-15 में ‘गदर पार्टी के सदस्यों के नेतृत्व में हुआ जो पंजाब में क्रांतिकारी काम कर रहे थे। गदर पार्टी के कुछ सदस्य अमेरिका से आकर मण्डी और सुकेत में कार्यकर्ता भर्ती करने के लिए फैल गए। मियाँ जवाहर सिंह और मण्डी की रानी खैरगढ़ी इनके प्रभाव में आ गई। दिसम्बर, 1914 और जनवरी 1915 को इन्होंने मण्डी के सुपरिटेन्डेंट और वजीर की हत्या, कोषागार को लूटने और ब्यास पुल को उड़ाने और मण्डी तथा सुकेत रियासतों पर कब्जा करने की योजना बनाई। नागचला डकैती के अलावा गदर पार्टी के सदस्य किसी और योजना में सफल नहीं हो सके। इस आंदोलन को दबा दिया गया। जवाहर नरयाल, मियाँ जवाहर सिंह, बद्री, सिद्धु और खराड़ा को जेल में डाल दिया गया। रानी खैरगढ़ी ललिता देवी को देश निकाला दे दिया गयाभाई हिरदा राम को लाहौर षड़यंत्र केस में फांसी दे दी गईसुरजन सिंह और निधान सिंह चुग्घा को नागचला डकैती के झूठे मुकदमे में फांसी दे दी गई। मण्डी के हरदेव गदर पार्टी के सदस्य बन गए और बाद में स्वामी कृष्णानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

महात्मा गांधी का शिमला आगमन—-
11 मई 1921 को गांधी जी शिमला पधारेउनके साथ मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली, लाला लाजपतराय, मदन मोहन मालवीय, लाला दुनी चन्द अम्बालवी आदि नेता भी शिमला आये। 13 मई को गांधी जी वायसराय लार्ड रीडिंग से मिले।

लगभग 1922 के पश्चात् जुब्बल रियासत के गांव धार के इंजीनियर भागमल सौहटा ने राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रवेश किया। श्री सौहटा ने शिमला में माल रोड पर स्थित अपने इम्पीरियल होटल के निवास से स्वाधीनता आन्दोलन का कार्य आरम्भ किया।
अमरीका से आये एक व्यक्ति सेमुअल इवांस स्टोक्स ने शिमला पहाडियों के ऊपरी भाग कोटगढ़ में रहना आरम्भ किया और गांधी जी के विचार से प्रभावित होकर बेगार प्रथा के विरुद्ध सारी पहाड़ी रियासतों में आन्दोलन चलाया। इसके लिये जन-जागृति के उद्देश्य से उन्होंने कई लेख लिखे और सभायें की। उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया और सत्यानन्द स्टोक्स बन गये थे। वह असहयोग आन्दोलन में भी भाग लेते रहे जिसके कारण उन्हें बन्दी बना लिया गया था और 24 मार्च 1923 को अन्य लोगों के साथ शिमला में कैथू जेल से मुक्त किया गया था। सत्यानन्द स्टोक्स ने जेल से रिहा होने के पश्चात् पहाड़ी रियासतों में अपना समाज-सुधार और राजनैतिक जागृति का कार्यक्रम जारी रखा।

1925 ई. को शिमला में वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने ‘सैन्टल कौन्सिल चैम्बर ‘का उद्घाट्न किया। इस अवसर पर स्वराज दल के विट्ठल भाई पटेल केन्द्रीय विधान सभा के प्रथम अध्यक्ष चुने गये। इस पद को कालान्तर में ‘स्पीकर’ का नाम दिया गया। यह ऐतिहासिक कौन्सिल चैम्बर इमारत वर्तमान समय में ‘हिमाचल प्रदेश की विधान सभा‘ है। इसी समय में सोलन में सनातन धर्म सभा का स्थापना स्वामी गणेश दत्त ने की।

वर्ष 1927 ई में में सुजानपुर टीहरा के ‘ताल’ में एक सम्मेलन हुआ जिसमें पुलिस ने लोगों की निर्मम पिटाई की। ठाकुर हजारा सिंह, बाबा कांशीराम, चतर सिंह को भी इस सम्मेलन में चोटें लगीं। बाबा कांशीराम ने इस सम्मेलन में शपथ ली कि वह आजादी तक काले कपड़े ही पहनेंगेबाबा कांशीराम को ‘पहाड़ी गांधी’ का खिताब 1937 में गदड़िवाला जनसभा में पं. जवाहर लाल नेहरू ने दिया। उन्हें सरोजनी नायडू ने ‘पहाड़ी बुलबुल’ का खिताब दिया

धामी गोली कांड–

धामी गोली कांड 16 जुलाई 1939 को हुआ था। 13 जुलाई, 1939 ई. को शिमला हिल स्टेटस हिमालय रियासती प्रजामण्डल के नेता भागमल सौठा की अध्यक्षता में धामी रियासत के 500-600 स्वयंसेवकों की बैठक हुई। इस बैठक में मांग की गई कि राणा जनता के प्रतिनिधि सरकार में शामिल करें और उन्होंने धामी प्रेम प्रचारिणी सभा पर लगाई गई पाबंदी को हटाने का अनुरोध किया, जिस धामी के राणा ने मना कर दिया। 16 जुलाई, 1939 में भागमल सौहटा के नेतृत्व में लोग धामी के लिए रवाना हुएभागमल सौहटा को घणाहट्टी में गिरफ्तार कर लिया गया। राणा ने हलोग चौक के पास इकट्ठी जनता पर घबराकर गोली चलाने की आज्ञा दे दी, जिसमें 2 व्यक्ति दुर्गादास और उमादत्त मारे गये व कई घायल हो गए। महात्मा गांधी की आज्ञा पर नेहरू ने दुनीचंद वकील को इस घटना की जांच के लिए नियुक्त किया

पझौता आंदोलन-
पझौता आंदोलन सिरमौर के पझौता में 1942 ई. को हुआयह भारत छोड़ो आंदोलन का भाग था। सिरमौर रियासत के लोगों ने राजा के कर्मचारियों की घूसखोरी व तानाशाही के खिलाफ “पझौता किसान सभा” का गठन किया। इस सभा के सभापति कोटला-बागी गांव के लक्ष्मी सिंह चुने गये। आंदोलन नेता वैद्य सूरत सिंह, मियां चूंचूं, बस्ती राम पहाड़ी, गुलाब सिंह, मदन सिंह, मेहर सिंह थे। सभा के सदस्यों ने लोटे-लूण किया। सात माह तक किसान नेताओं और आंदोलनकारियों ने पुलिस और सरकारी अधिकारी को पझौता में घुसने नहीं दिया। आंदोलन के दौरान पझौता इलाके में चूंचूं मियां के नेतृत्व में किसान सभा का प्रभुत्व स्थापित हो गया। सेना ने बाद में इन्हें गिरफ्तार कर लिया।

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